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अनंत चतुर्दशी मुहूर्त्त
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है. भाद्र शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत किया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार यह तिथि सूर्योदय काल में तीन मुहूर्त्त अर्थात 6 घडी़ ग्रह करनी चाहिए यह मुख्य पक्ष होता है. शास्त्रानुसार यह तिथि पूर्वाहरण व्याएवं मध्याह्न व्यापिनी लेनी चाहिए और यह गौण पक्ष होता है. दोनों ही परिस्थितियों में भाद्र शुक्ल चतुर्दी अर्थात अनंत चौदश 5 सितम्बर 2017 को अनन्त व्रत, पूजन और सूत्र बंधन के लिए शास्त्र सम्मत उपयुक्त है. इसके अतिरिक्त यह तिथि सूर्योदय के बाद कम से कम दो मुहूर्त्त अर्थात चार घडी़ विद्यमान हो तो भी ग्रह कि जा सकती है.
अनंत चतुर्दशी कथा
अनंत चतुर्दशी के दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है. मान्यता है कि जब पाण्डव सारा राज-पाट हारकर वनवास के दुख भोग रहे होते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें अनन्त चतुर्दशी व्रत करने को कहते हैं. श्री कृष्ण के कथन अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से इस व्रत का पालन करते हैं तथा अनन्तसूत्रधारण किया जिसके फलस्वरुप पाण्डवों को अपने समस्त कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.
अनंत चतुर्दशी पूजा विधि |
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अनंत चतुर्दशी के पूजन में व्रतकर्ता को प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए पूजा घर में कलश स्थापित करना चाहिए, कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करनी चाहिए इसके पश्चात धागा लें जिस पर चौदह गांठें लगाएं इस प्रकार अनन्तसूत्र(डोरा) तैयार हो जाने पर इसे प्रभु के समक्ष रखें इसके बाद भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधिसे पूजा करनी चाहिए तथा ॐ अनन्तायनम: मंत्र क जाप करना चाहिए. पूजा के पश्चात अनन्तसूत्र मंत्र पढकर स्त्री और पुरुष दोनों को अपने हाथों में अनंत सूत्र बांधना चाहिए और पूजा के बाद व्रत-कथा का श्रवन करें. अनंतसूत्र बांधने लेने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और दक्षिणा देना चाहिए एवं स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.
अनंत चतुर्दशी कथा इस प्रकार है सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे सुमन्तु मुनि ने अपनी कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से कर देते हैं. उनकी पत्नी शीला अनन्त-व्रत का पालन किया करती थी अत: विवाह उपरांत भी वह अनंत भगवान का पूजन करती है और अनन्तसूत्र बांधती हैं व्रत के प्रभाव से उनका घर धन-धान्य से पूर्ण हो जाता है सदैव सुख सम्पन्नता बनी रहती है. परंतु एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडती है सूत्र देखकर उन्हें यह अनुकूल नहीं लगता और वह अपनी पत्नी से इसे अपने हाथ से उतार देने को कहते हैं.
शीला ने विनम्रतापूर्वक उन्हें कहती है कि यह अनंत भगवान का सूत्र है जिसके प्रभाव से उन्हें सुख और ऎश्वर्य की प्राप्ति हुई है परंतु अपने मद में चूर ऋषि उस धागे का अपमान करते हैं और उसे जला देते हैं. इस अपराध के परिणाम स्वरुप उनका सारा सुख समाप्त हो जाता है, दीन-हीन कौण्डिन्य ऋषि अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय करते हैं और अनन्त भगवान से क्षमा याचना करते हैं. वह प्रायश्चित हेतु चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करते हैं, उनके श्रद्ध पूर्वक किए गए व्रत पालन द्वारा भगवान अनंत प्रसन्न हो उन्हें क्षमा कर देते हैं और ऋषि को पुन: ऎश्वर्य एवं सुख की प्राप्ती होती है.
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