वास्तुदोषों से होने वाले रोग और उनके उपाय
आइए जानें
वास्तुदोषों से होने वाले रोग और उनके उपाय पूर्व दिशा के वास्तुदोष और उपाय-
घर के
पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी
एवं पत्थर, मिट्टी
इत्यादि के ढेर हों, तो
गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है। vastu-dosh यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से
अधिक ऊँची हो, तो
संतान हानि का सामना करना पडता है। अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ
रहेंगीं। उपाय- पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है.
इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य
यन्त्र’ स्थापित करें और
छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें। पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा
खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में
मान-प्रतिष्ठा बढेगी।
पश्चिम
दिशा में दोष- पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है। यदि घर के
पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार
होना पडेगा। यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता
रहेगा। यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों
को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा। उपाय- पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें। परिवार का मुखिया
न्यूनतम 11
शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे। पश्चिम दिशा में
अशोक का एक वृक्ष लगायें।
उत्तर दिशा में – उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस
दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका
कारक स्थान है. यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने
इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं. यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का
शिकार होना पडता है. बचाव के उपाय- इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें. परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे. भवन के
प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें। उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा(Parrot Green) रंग करवायें।
दक्षिण दिशा में दोष- दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि
ग्रह मंगल है, जो
कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे
और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है। जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान
होता है. यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून
की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की
खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है। दक्षिण दिशा में उत्तरी
दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट
भोगना पडता है। बचाव के उपाय- इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की
स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें। घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें। दक्षिणमुखी द्वार पर एक
ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें