अंक
ज्योतिष का विभिन्न ज्योतिषीय विधाओं से संबंध
ब्रह्मा द्वारा रचित इस सृष्टि में सूक्ष्म से
सूक्ष्मतर सभी किसी न किसी रूप में सामंजस्य रखते हैं। हमारी भारतीय आध्यात्मिक
परंपराएं, अंकों के शुभ-अशुभ फलों का समन्वय जहां विश्व के अन्य धर्मों के
साहित्य एवं मान्यताओं से समानता रखता है वहीं हस्त, ज्योतिष,
वास्तु
एवं फलित ज्योतिष सभी में अंक शास्त्र का प्रभाव देखा जा सकता है।
अंकशास्त्र का विभिन्न ज्योतिषीय
विद्याओं के साथ आपसी संबंध… हमारे ऋषि अगस्त्य, ऋषि
पराशर रूपी महान वैज्ञानिकों ने हजारों वर्ष पूर्व से ही पौराणिक ग्रंथों के
विवरणों तथा प्रचीन परंपराओं के इतिहास को इस भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न
ज्योतिषीय पद्धतियों का इन विद्याओं का केंद्र बनाया था। विश्व के प्राचीन साहित्य,
पूर्व
एवं वर्तमान समय के परंपराओं के इतिहास की ओर यदि दृष्टि डालें तो विभिन्न
ज्योतिषीय पद्धतियों यथा फलित ज्योतिष, सामुद्रिक ज्योतिष, हस्त
ज्योतिष, अंक ज्योतिष एवं वास्तु विद्यायें संपूर्ण विश्व तक केवल फैली हुई ही
नहीं, वरन् इनमें आपसी तौर पर परंपरागत समानताएं भी पाई गई है।
जैसे
भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में अंक 7 को शुभ माना जाना, 7 वार,
7 चक्र,
7 दिन,
विवाह
में अग्नि के 7 फेरे, 7 द्वीप (सप्त
द्वीप), 7 पाताल। इसी भांति यहूदियों की धार्मिक परंपराओं में भी अंक 7 की
महत्ता तथा 7ग7त्र49 की संख्या को भी
काफी प्रभावशाली माना जाता है।
अंकशास्त्र की यह विद्या मूलांक, भाग्यांक
एवं नामांक जैसी तीन पद्धतियों में प्रचलित है। सदियों से मानव जाति का स्वभाव ऐसा
रहा है कि वह प्रत्येक बार कुछ नया जानना चाहता है। आसानी से प्रत्येक मनुष्य
संतुष्ट नहीं होता। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है
कि मानव की उपर्युक्त जिज्ञासा ने ही उसे ज्योतिष शास्त्रों के विभिन्न विद्याओं
के गंभीर रहस्योद्घाटन के लिए प्रवृत्त किया है। इस शास्त्र की परिभाषा समय-समय पर
विभिन्न रूपों में मानी जाती रही है। समय के साथ-साथ यह परिभाषा और अधिक विकसित
होती गई। नक्षत्रों की आकृति, स्वरूप, गुण एवं प्रभाव
का परिज्ञान प्राप्त करना ज्योतिष माना जाने लगा। आदि काल में नक्षत्रों के
शुभाशुभ फलानुसार कार्यों का विवेचन एवं ऋतु, अयन, दिनमान
लग्नादि शुभाशुभ अनुसार विधायक कार्यों को करने का ज्ञान प्राप्त करना भी इस
शास्त्र की परिभाषा में परिणित हो गया। सूर्य प्रज्ञप्ति, ज्योतिष करण्यक,
वेदांग
ज्योतिष, हस्त ज्योतिष, अंक ज्योतिष, प्रश्न ज्योतिष
आदि। प्रभृति ग्रंथों के प्रणयन तक ज्योतिष के गणित और फलित ये दो भेद स्पष्ट नहीं
हुए थे और ये परिभाषायें केवल यहीं तक सीमित नहीं रहीं, अपितु
ज्ञानोन्नति के साथ-साथ विकसित हुई। राशि और ग्रहों के स्वरूप, रंग,
दिशा,
तत्व,
धातु
आदि के विवेचन भी इसके अंतर्गत आ गये। समय के साथ-साथ इस विषय के अनेकों गं्रंथ
हाथों में आये। होरा ग्रंथों में जातक के जन्म नक्षत्रों, जन्म लग्नादि व
द्वादश भावों के बारे में ज्ञान हुआ, मध्य युग में संहिताओं की परिभाषा,
होरा,
गणित
और शकुन-अपशकुन के रूप मं मानी गई। किंतु संहिता शास्त्र का जन्म आदिकाल से ही हुआ
था जिसकी परिभाषाओं का क्षेत्र उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। इसी भांति प्रश्नशास्त्र,
तत्काल
फल बतानेवाला शास्त्र साबित हुआ। ऋग्वेद संहिता में ‘चक्र’ शब्द
सामने आया जो राशि चक्र का बोधक है।
इसी भांति उत्तरोत्तर ज्योतिष शास्त्र की कई
शाखाएं विकसित होती गई जैसे सामुद्रिक शास्त्र, प्रश्नशास्त्र,
अंक
शास्त्र, लाल किताब, संहितादि।
फलित ज्योतिष के साथ-साथ
धीरे-धीरे अधिकांश विद्वानों का ध्यान बहुत प्राचीनकाल से ही सामुद्रिक शास्त्र, अंकशास्त्र और वास्तुशास्त्र के समानताओं की ओर गया और इन
पर उन्होंने अनेकानेक शोध किये और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ”किसी भी परिणाम का प्रारंभ और अंत अंक ही है। अंक शास्त्र
से यह जाना जा सकता है कि जातक/जातिका के लिए भूत, भविष्य, वर्तमान समय में क्या कुछ उनके जीवन में घटित हुआ, हो रहा है और होगा ?
अंक ज्योतिष का
वर्तमान रूप पाश्चात्य सभ्यता की देन है, जिसके अंतर्गत इस्वी सन की तारीख से
मूलांक, तारीख, माह, और सन के अलग-अलग अंकों के योग के
संपूर्ण योग से भाग्यांक और अंग्रेजी के अक्षरों के अंकों को जोड़कर नामांक ज्ञात
कर फलादेश किया जाता है। इनमें विभिन्न विद्वानों के नामांक अंक कुछ भिन्न हैं।
कुछ आधुनिक विद्वानों ने सामुद्रिक
शास्त्रानुसार कई जातक/जातिकाओं के हाथों की रेखाओं व विभिन्न ग्रहों के पर्वतों
का अध्ययन कर उनके मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक का विश्लेषण कर इस
निष्कर्ष पर पहुंचे कि किस अंक से कौन-कौन अंक प्रभावित हैं ?
उनके तथ्यों के आधार पर मैंने भी कुछ
जातक/जातिकाओं के हस्तरेखाओं एवं विभिन्न ग्रहों के पर्वतों का अध्ययन कर उनके
मूलांक/भाग्यांक /नामांक का विश्लेषण कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अंकशास्त्र,
सामुद्रिक
शास्त्र एवं उनके घर के वास्तु सामंजस्य संबंधी फलादेश में बहुत ही समानताएं हैं
और खास करके उनके करियर निर्धारण संबंधी फलादेश में भी बहुत सी समानताएं हैं।
अंकशास्त्र, सामुद्रिक
शास्त्र एवं वास्तुशास्त्र में समानताएं अंकशास्त्र, हस्तरेखा
शास्त्र एवं वास्तु शास्त्र के आधार पर विभिन्न मूलांकों के जातक/जातिकाओं का
तुलनात्मक अध्ययन निम्नानुसार प्रस्तुत कर रहा हूं। सुविज्ञ पाठक/साधक/विद्वान
इसका अध्ययन कर अपनी-अपनी हस्तरेखाओं व मूलांक/भाग्यांक/नामांक, निर्धारण
कर अपने वर्तमान एवं भविष्य को सुधार सकते हैं। ऐसा करके मुझे कृतार्थ कर अनुगृहीत
करने की कृपा करेंगे।
मूलांक
1 तारीख: 1, 10, 19, 28, मित्र अंक: 2, 3, 6, 7, 9 सम
अंक: 1, 8 शत्रु अंक: 4, 5 पति-पत्नी मित्र अंक: 2, 7, 5 पति-पत्नी
सम अंक: 3, 9, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 6, 8 यदि
किसी जातक की हथेली में सूर्य पर्वत व सूर्य रेखा साफ सुथरी हो और उसकी संख्या एक
से अधिक हो, सूर्य रेखा, भाग्य रेखा या
जीवन रेखा में विलीन हो रही हो तो वह जातक/जातिका सूर्य प्रधान होता है। ऐसे जातक/
जातिकाओं का जन्म अवश्य ही 1, 10, 19 या 28 तारीख को हुआ
होता है। सूर्य रेखा पर छोटा वृत्त या साफ-सुथरा त्रिभुज हो व उसके नीचे साफ-सुथरी
सूर्य रेखा हो तो भी ऐसे जातक का सूर्य बहुत सशक्त होता है। वास्तुशास्त्र के
अनुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ रंग सुनहरे, पीलीे एवं
तांबाई सुनहरे, भूरे रंग से संबंधित होते हैं। ऐसे लोग अत्यधिक
मेहनती होते हैं। ये सरकारी नौकरी, राजनीति, समाज सेवा आदि
क्षेत्रों में उन्नति करते हैं।
मूलांक 2 तारीख: 2,
11, 20, 29, मित्र अंक: 1, 2, 4, 6, 7, 9 सम अंक: 3, 8 शत्रु अंक: 5
पति-पत्नी
मित्र अंक: 5, 6, 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु
अंक: 7, 9 यदि किसी जातक की हथेली में चंद्र पर्वत उत्तम हो, उस
पर कटाव न होकर आड़ी रेखाएं हों व साफ सुथरी हों तो ऐसे जातक/जातिकाओं के जन्म
अवश्य ही 8, 11, 20 या 29 तारीख को हुआ होता है। वास्तुशास्त्र
के अनुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ रंग हल्के से गहरे, हरे, सफेद
व क्रीम रंग से संबंधित होते हैं। ऐसे व्यक्ति विशिष्ट कल्पना शक्ति संपन्न होते
हैं। ये अधिकांशतः आर्किटेक्ट, डिजाइनर व फिल्म निर्देशक होते देखे गए
हैं।
मूलांक
3 तारीख: 3, 12, 21, 30 मित्र अंक: 1, 5, 6, 9 सम
अंक: 2, 4, 7 शत्रु अंक: 3, 8 पति-पत्नी मित्र
अंक: 2, 7, 8, 9 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु
अंक: 5, 6 यदि किसी जातक/जातिकाओं की हथेली में गुरु पर्वत उभरा हुआ हो व शनि
पर्वत की ओर से थोड़ा उभार लिए हुए हों, गुरु की अंगुली सूर्य की अंगुली से बड़ी
हो, सीधी हो तो ऐसे जातक/जातिकाएं गुरु प्रधान होते हैं। ऐसे लोगों का
जन्म अवश्य ही 3, 12, 21 या 30 तारीख को हुआ
होता है। धन, शिक्षा एवं आय के साधन ऐसे लोगों को प्रचुर
मात्रा में प्राप्त होते हैं। वास्तु शास्त्रानुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ
रंग-पीले, परपल, गुलाबी और जामुनी रंगों से संबंधित होते हैं।
ऐसे लोगों में बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमताएं होती है। ये मरते दम तक
सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। साहस, शक्ति, दृढ़ता और
आत्मविश्वास आदि के ये धनी होते हैं। ऐसे लोग अपने परिवारों मित्रों व स्वजनों की
सहायता करने में अग्रणी होते हैं। अपनी विलक्षण प्रभाव क्षमता से ये शत्रु को भी
अपना मित्र बना लेते हैं।
मूलांक 4 तारीख: 4,
13, 22, 31, मित्र अंक: 2, 4, 6, 7, 8, 9 सम अंक: 3, 5 शत्रु अंक: 1
पति-पत्नी
मित्र अंक: 2, 5, 7 पति-पत्नी सम अंक: 1, 9 पति-पत्नी शत्रु
अंक: 1, 6, 8 यदि किसी जातक/जातिका के हाथ में गुरु पर्वत
उठा हुआ हो और उस स्थान पर कटाव न हो, शनि पर्वत के नीचे हृदय रेखा व
मस्तिष्क रेखा के नीचे का राहु पर्वत उच्च हो, उस पर्वत पर कोई
भी दोष न हो या उस पर त्रिभुज या चतुष्कोण हो तो ऐसे जातकों का जन्म अवश्य ही 4,
13, 22, 31 तारीख को हुआ होता है। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे जातक एवं उनके गृह
आवास के शुभ रंग स्लेटी व हल्का नीला रंग लिए हुए से संबंधित होते हैं। ऐसे
जातक/जातिकाएं अपने जीवन काल में अनैतिक रूप से धन अधिक कमाते हैं। ऐसे बहुत ही कम
अवसर आते हैं जिनमें कभी कभार ही नैतिक कर्मों द्वारा धनार्जन करते हों। ये अपने
जीवन काल में संघर्षशील रहते हैं। ये अत्यधिक आधुनिक विचारधाराओं वाले, पुरानी
प्रथाओं के विरोधी, हर बात को विपरीत निगाह से देखने वाले, झगड़ालू
प्रवृत्ति के न होने के बावजूद भी ये बहुतों को शत्रु बना लेने की प्रवृत्ति वाले,
भिखारी
से करोड़ पति या करोड़पति से भिखारी बनने संबंधी स्थिति वाले होते हैं।
मूलांक
5 तारीख: 5, 14, 23 मित्र अंक: 3 सम अंक: 4,
6, 7, 8, 9 शत्रु अंक: 1, 2, 5 पति-पत्नी मित्र अंक: 1, 4, 3 पति-पत्नी
सम अंक: 2, 7, 6 पति-पत्नी शत्रु अंक: 8, 9 यदि
किसी जातक/जातिका की हथेली में बुध पर्वत की स्थिति अच्छी हो, उस
पर सीधी रेखाएं हों, बुध की अंगुली सीधी हो उस क्षेत्र पर कटाव या
जाल न हो तो जातक/जातिका की वाकशक्ति, बुद्धिमता, तर्कशक्ति बहुत
अच्छी होती है ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 5, 14 एवं 23 तारीख
को हुआ होता है। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग सफेद
स्लेटी और सभी रंगों के हल्के शेड से संबंधित रंग होते हैं। शुभ लक्षणों से युक्त
ऐसे लोगों की वाणी बहुत मीठी होती है। ऐसे लोग ज्ञानी, आजीवन मित्रता
निभाने वाले, कल्पनाशील, सूझबूझ वाले व
हमेशा तनावग्रस्त रहने वाले होते हैं। ऐसे लोग शारीरिक श्र्रम की अपेक्षा मानसिक
श्रम अधिक करते हैं। धनोपार्जन के लिए ऐसे लोग कई बार अपना व्यवसाय बदलते रहते
हैं। ये शत्रुता तो नहीं करते लेकिन यदि कोई इनसे दुश्मनी करता है तो ये उनका
विनाश अवश्य कर डालते हैं।
मूलांक
6 तारीख: 6, 15, 24 मित्र अंक: 1, 2, 3, 4, 6, 9 सम
अंक: 5, 7, 8 पति-पत्नी मित्र अंक: 3 पति-पत्नी सम
अंक: 1, 2, 4, 5, 7, 8 पति-पत्नी शत्रु अंक: 9 यदि किसी
जातक/जातिका के हथेली में शुक्र पर्वत साफ सुथरा, उभार लिए हुए या
उसको जीवन रेखा पूर्ण रूप से घेरती हो, उस पर मोटी-मोटी रेखाएं न हों, जीवन
रेखा एवं मंगल रेखा भी साफ सुथरी हों तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 6, 15,
24 तारीख
को हुआ होता है। वास्तु शास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग हल्के
गहरे नीले व गुलाबी हैं। ऐसे लोगों को धन प्राप्ति के कई साधन जीवन में मिलते रहते
हैं। ये रोमांटिक, शांत, ईमानदार, तेज बुद्धि,
धनी,
निडर,
प्रेमी,
ऐश्वर्य
संपन्न, कामुक, कला के शौकीन, हंसमुख आदि
गुणों से संपन्न होते हैं। इनके ही गुणों के अनुकूल नायक/नायिका, गायक/गायिका,
चित्रकार
आदि होते हैं।
मूलांक 7 तारीख: 7,
16, 25 मित्र अंक: 1, 7, 9 सम अंक: 3, 5, 8 पति-पत्नी मित्र
अंक: 3, 5, 6, 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु
अंक: 2, 9 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में केतु पर्वत उभार लिए हुए हों,
साफ
सुथरा हो, भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो व साफ हो तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य
ही 7, 16, 25 तारीख को हुआ होता है। ऐसे लोगों की हथेली में
अशुभ लक्षण भी हों तो भी वे कभी भी धन वैभव मान सम्मान प्राप्त करते रहते हैं।
किंतु वे बुद्धि आदि का सही उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को केतु के उपाय अवश्य
करनी चाहिए। ऐसे लोग अपनी सबसे अलग पहचान बनाने में सफल होते हैं। ये प्रत्येक
व्यक्ति की राज जानने की कला में निपुण होते हैं। ऐसे लोग योजना से जुड़े क्षेत्र,
कला
या चित्रकला आदि में भी नाम अर्जित करते देखे जाते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे
जातक एवं उनके गृह आवास के शुभ रंग हरा, पीला, सफेद रंग से
संबंधित होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के लोग पत्रकारिता, अभिनय, प्लास्टिक,
खेल
कार्य, चिकित्सा, पर्यटन, औषधि, खनिज
आदि से जुड़े कार्यों में विशेष सफल होते देखे जाते हैं। ये लेखन, गायन
व संगीत कलाओं के साथ-साथ तंत्र-मंत्रों, ज्योतिष, योगादि, गुप्त
विद्याओं में भी दक्ष होते देखे जाते हैं। देखा जाय तो ऐसे लोगों को सर्वगुण
संपन्न व्यक्तित्व का स्वामी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। ये परंपरा या अवसरवादी
नहीं होते, स्पष्टवादी होते हैं।
मूलांक
8 तारीख: 8, 17, 26 मित्र अंक: 4, 6 सम अंक: 1,
2, 5, 7, 8, 9 शत्रु अंक: 3 पति-पत्नी मित्र अंक: 3 पति-पत्नी
सम अंक: 2, 5, 6, 7, 9 पति-पत्नी शत्रु अंक: 1, 4 यदि
किसी जातक/जातिका की हथेली में शनि पर्वत साफ सुथरा, साथ ही भाग्य
रेखा भी साफ सुथरी हो, शनि की अंगुली सीधी हो या शनि क्षेत्र पर
स्पष्ट रूप से त्रिकोण बना हो व उसके नीचे हृदय रेखा स्पष्ट हो तो ऐसे लोगों का
जन्म अवश्य ही 8, 17 या 26 तारीख को हुआ होता है। अन्य लक्षण शुभ
हो तो ऐसे लोग धनी व कार्य कुशल साबित होते हैं। ऐसे लोग जुए, लाॅटरी,
सट्टे,
शेयर
आदि से भी लाभ प्राप्त करते हैं। शनि से प्रभावित ये लोग संगीत, काली
वस्तुओं व लोहे के व्यापार, ज्योतिष, ट्रांसपोर्ट,
कोयला,
धर्म-कर्म,
बिजली,
दवाईयां,
चमड़े
के व्यवसाय, ठेकेदारी, बागवानी,
पुलिस
एवं फौज से जुड़े कार्यों में संलग्न रहते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे जातक एवं
उनके गृह आवास के शुभ रंग गहरे स्लेटी, काले, गहरे नीले और
जामुनी रंगों से संबंधित होते हैं। यदि शनि पर्वत पर रेखाऐं साफ-सुथरी हों तो ऐसे
लोगों को बचपन से ही सभी प्रकार की सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं। यदि हाथ में शनि
की अंगुली सीधी हो, पर्वत उभार लिए हुए हों, शनि की अंगुली
पर केवल तीन ही पर्व हों, अंगुली पतली हो, नाखून साफ सुथरे
हों तो ऐसे लोगों पर शनि की विशेष कृपा होती है। पूर्व जन्मों में ऐसे लोग साधु
संतों की सेवा व बुजुर्गों के सम्मान, दान पुण्य व दूसरों की मदद करने वाले
होते हैं।
मूलांक 9 तारीख: 9,
18, 27 मित्र अंक: 1, 2, 3, 4, 6, 7, 9 सम अंक: 5,
8 पति-पत्नी
मित्र अंक: 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 2, 3, 4 पति-पत्नी
शत्रु अंक: 7, 5 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में उच्च मंगल व
निम्न मंगल पर्वत उभार लिए हुए हों, मंगल पर कटाव न हो, पर्वत
साफ-सुथरा हो तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 9, 18 व 27 तारीख
को हुआ होता है। यदि मंगल पर्वत उन्नत न भी हों, अन्य शुभ लक्षण
भी कम हों तो भी ऐसे लोग जिद्दी व शीघ्र गुस्सा करने वाले होते हैं।
वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग लाल, गुलाबी,
सिंदूरी
से संबंधित रोग होते हैं। इस अंक से प्रभावित जातक/जातिकाओं की हथेली में यदि
रेखाएं अच्छी हों, मंगल पर्वत उभार लिए हुए हों तो ऐसे व्यक्ति
संपत्ति की खरीद फरोख्त, बिल्डिंग मैटेरियल के कार्य करने वाले
या किसी बड़े विभाग के चीफ होते हैं। ऐसे लोग अक्सर अति आत्म विश्वास के शिकार भी
होते हैं। अधिकांश ऐसे जातक/जातिकाएं अधिकतर मेहनत मजदूरी करके आजीविका चलाने वाले
भी होते हैं। प्रायः इस मूलांक वाले लोगों की अंगुलियां मोटी होती है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि विभिन्न जातक/
जातिकाओं के हस्तरेखाओं, ग्रहों के पर्वतों, उनके
जन्मांक के मूलांकों/भाग्यांकों/नामांकों, वास्तुशास्त्र नियमानुसार जातकों व
उनके गृह आवास के नियमानुसार उनके जीवन के कर्म व घटनाओं में काफी कुछ समानताएं
लिए हुए होते हैं। किसी-किसी के मूलांकों, तो किसी-किसी के भाग्यांकों, तो
किसी-किसी के नामांकों के आधार पर भी हस्तरेखाओं एवं ग्रह पर्वतों में समानताएं
होती हैं। यदि किसी प्रकार से जातक/जातिकाओं में ताल-मेल नहीं बैठ रहा हो तो
नामांक बदलने के लिए अंतिम अक्षरों में से कुछ परिवर्तन कर नाम को तो बदला जा सकता
है किंतु उनके मूलांक व भाग्यांक को नहीं बदला जा सकता। नाम के अंतिम अक्षर में
कोई भी उचित अक्षर प्रयोग करके जीवन को अच्छा या सुखमय बनाने का प्रयास किया जा
सकता है। उसका आधार अंक कुंडली में यह देखकर किया जा सकता है कि जातक को किस ग्रह
और योग की आवश्यकता है। अंक कुंडली वैवाहिक जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती
है जो योग लड़की की कुंडली में नही है, वह योग यदि लड़के की कुंडली में हुआ हो
तो वह जीवन में सामंजस्य बिठाने में सहायक होता है।
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