गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

रुद्रदेव सूक्त

रुद्रदेव सूक्त

अथर्ववेद के "रूद्रदेव सूक्त" में शिव संहारक रूप का वर्णन किया है । जिसमे ऋषि-मुनियों ने सर्वव्यापक पुरुषरूप को अपने हृदय में धारणार्थ शिव-स्तुति प्रारंभ की । उसमें से पांच महत्वपूर्ण मन्त्रों का सरल हिंदी भाषा में पद्यांतर किया है। इसमें पञ्चमुखी शिव की अराधना को विशेष महत्व दिया गया है। पञ्चमुखी शिव में पश्चिम दिशा की ओर मुख वाले शिवमुख को "सद्योजात", उत्तर दिशा की ओर मुख वाले शिव को "वामदेव", दक्षिण दिशा की ओर मुख वाले शिव को "अघोर", पूर्व दिशा की ओर मुख वाले शिव को "तत्पुरुष" और उर्ध्ववक्त्र दिशा की ओर मुख वाले शिव को "ईशान" कहते हैं। मूल मंत्र संस्कृत और उसका हिंदी पद्यांतर नीचे दिया गया है ।
मंत्र : 
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमिश्वरह सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिब्रह्मणोध्पतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोम ॥१॥





 
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्र प्रचोदयात ॥ २॥
ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वतः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेस्तु रूद्ररूपेव्यः ॥३॥ 
ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालायनमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाथ नमः सर्व भूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥ ४॥
ॐ सदयोजत प्रपदयामी। सदयोजाताय वै नमो नमो भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोदभवाय नमः॥ ५॥ 

हिंदी पद्यांतर :

अधीश्वर, अधिपति, प्रतिपालक । साक्षात् ब्रह्मा है वह ईश्वर । सच्चिदानन्द कल्याणी शिव को। सानिध्य रहने विनती करो ॥१॥
अंतर्यामी पुरुष को समझो । महादेव का मनन तुम करो । सत्यधर्म प्रेरित करने को । रुद्रदेव को विनती करो ॥२॥
घोर अघोर से भी है घोर जो । सर्व संहारी सर्व व्याप्त जो । उस साक्षात् रूद्ररुपी शिव को । वारंवार नमन करो ॥ ३॥
वामदेव , रूद्र, काल, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ,। कल बल विकरण, बलप्रमथन, बल । सर्वभूतदमन, मनोन्मन नाम के । रुद्रदेव को नमन करो ॥ ४॥
"
सदयोजात" के शरण में जाओ । उसे हाथ जोड़ नमन करो । अतिभव, पराभव कभी न हो यह । "भवोद्भव" को विनती करो ॥ ५॥

श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र

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|| श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र ||

रत्नैः कल्पित मासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्यांबरं
    नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चंदनम् ।
जाजीचंपकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा दीपं
    देवदयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥ १ ॥

सौवर्णे मणिखंडरत्नरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
    पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं स्वादुदम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्वलं
    तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभोस्वीकुरु ॥ २ ॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
    वीणाभेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तधा ।
साष्टांगं प्रणतिः स्तुति र्बहुविधा एतत्समस्तं
    मया संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ ३ ॥

आत्मा त्वं गिरिजा मति स्सहचराः प्राणाश्शरीरं गृहं
    पूजते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधि स्थितिः ।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो
    यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भोतवाराधनम् ॥ ४ ॥

करचरणकृतं वा कर्म वाक्कायजं वा
    श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत् क्षमस्व
    शिवशिव करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ ५ ॥

:: इति श्री शिवमानस पूजा स्तोत्रं संपूर्णम् ::