रुद्रदेव सूक्त
अथर्ववेद के
"रूद्रदेव सूक्त" में शिव संहारक रूप का वर्णन किया है । जिसमे
ऋषि-मुनियों ने सर्वव्यापक पुरुषरूप को अपने हृदय में धारणार्थ शिव-स्तुति प्रारंभ
की । उसमें से पांच महत्वपूर्ण मन्त्रों का सरल हिंदी भाषा में पद्यांतर किया है।
इसमें पञ्चमुखी शिव की अराधना को विशेष महत्व दिया गया है। पञ्चमुखी शिव में पश्चिम दिशा की ओर मुख वाले शिवमुख को "सद्योजात", उत्तर दिशा की ओर मुख वाले शिव को "वामदेव", दक्षिण दिशा की ओर मुख वाले शिव को "अघोर", पूर्व दिशा की ओर मुख वाले शिव को "तत्पुरुष" और उर्ध्ववक्त्र दिशा की ओर मुख वाले शिव को "ईशान" कहते हैं। मूल मंत्र संस्कृत और उसका हिंदी
पद्यांतर नीचे दिया गया है ।
मंत्र :
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमिश्वरह सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिब्रह्मणोध्पतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोम ॥१॥
मंत्र :
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमिश्वरह सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिब्रह्मणोध्पतिर्ब्रह्मा शिवो में अस्तु सदाशिवोम ॥१॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्र प्रचोदयात ॥ २॥
ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वतः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेस्तु रूद्ररूपेव्यः ॥३॥
ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालायनमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाथ नमः सर्व भूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥ ४॥
ॐ सदयोजत प्रपदयामी। सदयोजाताय वै नमो नमो भवे भवे नातिभवे भवस्य मां भवोदभवाय नमः॥ ५॥
हिंदी पद्यांतर :
अधीश्वर, अधिपति, प्रतिपालक । साक्षात् ब्रह्मा है वह ईश्वर । सच्चिदानन्द कल्याणी शिव को। सानिध्य रहने विनती करो ॥१॥
अंतर्यामी पुरुष को समझो । महादेव का मनन तुम करो । सत्यधर्म प्रेरित करने को । रुद्रदेव को विनती करो ॥२॥
घोर अघोर से भी है घोर जो । सर्व संहारी सर्व व्याप्त जो । उस साक्षात् रूद्ररुपी शिव को । वारंवार नमन करो ॥ ३॥
वामदेव , रूद्र, काल, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ,। कल बल विकरण, बलप्रमथन, बल । सर्वभूतदमन, मनोन्मन नाम के । रुद्रदेव को नमन करो ॥ ४॥
"सदयोजात" के शरण में जाओ । उसे हाथ जोड़ नमन करो । अतिभव, पराभव कभी न हो यह । "भवोद्भव" को विनती करो ॥ ५॥
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