रविवार, 7 जुलाई 2013

वेद महिमा

वेद को ईश्वर का निस्वास कहा जाता है !वेद से ही समस्त जगत का निर्माण हुआ है ! अत; भारतीय संस्कृति में वेद की अनुपम महिमा है ! जैसे इश्वर अनादि अपौरुषेय है वैसे ही वेद भी अनादि अपौरुषेय है ! वेद को देव पितर व मनुष्यों का सनातन चक्षु कहा गया है ! शव्द ही ब्रम्ह है ! वेद का अंत नही है !अनंता वै वेदा:! वेद व्यास जी ने वेद के ४ भाग किये है !
ऋग्वेद , युजुर्वेद , सामवेद व अथर्व वेद के  नाम से लोक में विख्यात है ! वेदों की अनेको शाखाये है !क्रमश; 21, १०१, १०००  व  ९  शाखाये  पूर्व में थी ! इस समय मात्र १२ ही शाखाये उपलव्ध है !
भगवान ऋग्वेद श्वेत वर्ण वाले है !  दो भुजाये व गर्दभ के समान मुख है !अक्षमाला से समन्वित सौम्य स्वभाव प्रसन्न सदा अध्धयन में रत रहते है !
भगवान यजुर्वेद वकरीके समान मुख वाले पीत वर्ण अक्षमाला व वज्र धारण करते है ! ऐश्वर्य व मंगल प्रदान करते है !
भगवान  सामवेद  नीलकमल वर्ण के समान  अश्व मुख  अक्षमाला  व  श ख  धारण करते है !
उज्वल वर्ण वन्दर मुख अक्षमाला व खट्वांग धारित यजन कर्म प्रिय भगवान अथर्व वेद विद्दय मान कहे गए है ! अद्वतीय परमेश्वर रूप में उन्हें महाविष्णु कहा जाता है ! विष्णु के विविध रूप कर्म है !  जगत स्रष्टा है !
इदम विष्णुर्वि  चक्रमे  त्रेधा निदधे   पदम  !  समुढमस्य  पा   ग्व   सुरे   स्वाहा  !!
            सर्व व्यापी परमात्मा ईश्वर विष्णु ने इस जगत को धारण किया है वे ही पहले भुमि दुसरे अन्तरिक्ष और तीसरे द्युलोक में तिन पदों को  स्थापित करते है !सर्वत्र व्याप्त है इनमे समस्त विश्व व्याप्त है !हम उनके निमित्त हवी प्रदान करे !
श्रीश्च  ते  लक्ष्मीश्च  पत्न्यI व  हो  रात्रे  पार्श्वे  नक्षत्रानी  रूप  मस्विनौ  व्यात्तम ! इष्णन्नीषIणIमुम   म   इष!ण सर्व लोकं म  इषIण !
सम्रद्धि और सौन्दर्य तुम्हारी पत्नी के रूप में है दिन रात अगल बगल है अनन्त नक्षत्र तुमहारे रूप है !द्यावा प्रथ्वी मुख है! इकक्षा करते

 समय परलोक की इक्क्षा करो मै सर्व लोकात्मक हो जाऊ -ऐसी इक्छा करो ,ऐसी इक्छा करो !

स्वस्तिवाचन व पांच देव पूजन

स्वस्तिवाचन -सभी शुभ एवम मांगलिक व धार्मिक कार्यो को प्रारम्भ करने से पूर्व वेद के कुछ मंत्रो का पाठ होता है जो स्वस्ति पाठ या स्वस्तिवाचन कहलाता है ! वायु की पत्नी का स्वस्ति नाम का पाठ  इसमें आता है इस सूक्त का पाठ करने से कल्याण होता है !काणव संहिता ,मैत्रायणी संहिता ,और ब्राम्हण आरण्यकमें भी प्राय; यथावत रूप में ही मिलता है !इस सूक्त में १० ऋचायेहै ऋषि गौतम देव विस्वेदेवा है समस्त कार्यो की निर्विघ्नता हेतु मंगल प्राप्ति की प्रार्थना करते है !

आ  नो   भद्रा;  क्रतवो  यन्तु  विस्वतो s द्व्धासो अपरीतास  उद्भिद; !  देवा   नो   यथा   सदमिद व्रधे असन्न प्रायुवो   रक्षितारो   दिवे    दिवे ! !१!!

सब ओर से निर्विघ्न स्वयंअज्ञात अन्य यज्ञो को प्रकट करने वाले कल्याणकारी यग्य हमे प्राप्त हो !सब प्रकार से आलस्य रहित होकर प्रति दिन रक्षा करने वाले देवता सदैव हमारी वृद्धि के निमित प्रयत्नशील हो !                    

                             देवानाम  भद्रा  सुमति; रिजुयताम देवानां ग्व   राति   रभिनो   निवरत्ताम!देवानां ग्व सख्य मुप सेदिमा वयं देवा न आयु; प्रति रंतु जीवसे ! !2!!................

           हमे पांचदेवो की सदैव पूजा करनी चाहिए -देव  गणेश ,विष्णु ,शिव,सूर्य व देवी भगवती दुर्गा  की उपासना करनी चाहिए !
भू त भावन  भगवान शिव की प्रसन्नता हेतु रूद्र सूक्त  [ रुद्र अष्टाध्यायी ]पाठ का विशेष महत्व है उन्हें जलधारा प्रिय है !
देव विष्णु संसार के पालक है उनके निमित पुरुष सूक्त पाठ का विधान है !
सूर्य की स्तुति से हमे द्रष्टि प्राप्ति यश प्राप्ति व देवी स्तुति से शक्ति व रक्षा प्राप्ति होती है ! 

शनिवार, 6 जुलाई 2013

* वैदिक हिन्दू राष्ट्र गीत *

आ ब्रम्हन ब्राम्ह्नो ब्रह्म वर्चसी जायतामा राष्ट्रे रा जन्यः शुर इषव्यो s तिव्याधी महारथो जायताम दोग्ध्री धेनुर्वोधानाद्वानाशु; सप्ति पुरंधिर्योषा जिसनू रथेष्ठा;सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम निकामे निकामे न; पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्य्न्ताम योगक्षेमो न; कल्पताम !!

                                      -

                                        -  काव्य अनुबाद --

भारतवर्ष   हमारा   प्यारा  अखिल  विश्व  से  न्यारा ! सव  साधन  से  रहे  समुन्नत भगवन  हे! देश  हमारा !
हो  ब्राह्मण  विद्वान्  राष्ट्र   में  ब्रम्ह तेज  व्रत धारी !   महारथी    हो  शुर  धनुर्धर  क्षत्रिय  लक्ष्य  प्रहारी   !
गौवे  भी  अति  मधुर   दुग्ध  की  रहे   वहाती   धारा ! भारत  में  बलवान   वृषभ   हों  बोझ    उठाये  भारी  !  अश्व  आशुगामी   हो दुर्गम  पथ  में  विचरणकारी  !   जिनकी गति अवलोक लजाकर हो   समीर भी हा रा !महिलाये   हों सती  सुन्दरी   सद्गुन् वती  सयानी  !   रथारूढ़   भारत     वीरो   की   करें  विजय  अगवानी !  जिनकी गुण गाथा से गुंजित दिग दिगंत   हों सारा ! यज्ञ  निरत भारत  के  सूत  हों शुर  सुकृत    अवतारी !युवक यहाँ के सभ्य सुशिक्षित  सौम्य  सरल सुविचारी !जो होंगे इस धन्य राष्ट्र का भावी     सुद्रढ़   सहारा !    समय समय पर आवश्यकतावस रस धन बरसाए !अन्नौष्ध   में  लगे   प्रचुर   फल   और   पक      जाये !    योग  हमारा  क्षेम  हमारा  स्वत; सिद्ध  हो    सारा !भारत वर्ष   हमारा  प्यारा  अखिल  विश्व  से   न्यारा  !!