*शास्त्रो में जिस बांस की लकड़ी को चिता में भी जलाना वर्जित है हम उस बांस से बनी अगरबत्ती जलाते है...!!!*
*बांस जलाने से पित्र दोष लगता है*
इसलिए आजकल लोग परेशान है
*शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है*
बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते है
लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते है
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है
यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है
यह भी स्वांस के साथ शरीर मे प्रवेश करता है
इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुचाती है
इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है
हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
बांस का प्रयोग शवयात्रा में टिकटी (अर्थी) बनाने में किया जाता है और इसे चिता में भी नही जलाया जाता
इस परंपरा का यही वैज्ञानिक आधार है।
🙏🏻अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करें।
*बांस जलाने से पित्र दोष लगता है*
इसलिए आजकल लोग परेशान है
*शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है*
बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में होते है
लेड जलने पर लेड आक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते है
अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है
यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है
यह भी स्वांस के साथ शरीर मे प्रवेश करता है
इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुचाती है
इसकी लेश मात्र उपस्थिति केन्सर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है
हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
बांस का प्रयोग शवयात्रा में टिकटी (अर्थी) बनाने में किया जाता है और इसे चिता में भी नही जलाया जाता
इस परंपरा का यही वैज्ञानिक आधार है।
🙏🏻अतः कृपया सामर्थ्य अनुसार स्वच्छ धूप का ही उपयोग करें।