💥अस्त ग्रह ओर
इनके फल💥*
*ज्योतिष
शास्त्र में अस्त ग्रह के परिणामों की विशद व्याख्या मिलती है। अस्तग्रहों के बारे
में यह कहा जाता है : “त्रीभि
अस्तै भवे ज़डवत”,अर्थात्
किसी जन्मपत्रिका में तीन ग्रहों के अस्त हो जाने पर व्यक्ति ज़ड पदार्थ के समान
हो जाता है। ज़ड से तात्पर्य यहां व्यक्ति की निष्क्रियता और आलसीपन से है अर्थात्
ऎसा व्यक्ति स्थिर बना रहना चाहता है, उसके शरीर, मन
और वचन सभी में शिथिलता आ जाती है।*
*कहा
जाता है कि ग्रहों के निर्बल होने में उनकी अस्तंगतता सबसे ब़डा दोष होता है। अस्त
ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं, बलहीन हो जाते हैं और यदि वह मूल त्रिकोण या उच्चा राशि में भी हों
तो भी अच्छे परिणम देने में असमर्थ रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में एक अस्त ग्रह की
वही स्थिति बन जाती है जो एक बीमार,
बलहीन और अस्वस्थ राजा की होती है। यदि कोई अस्त ग्रह नीच राशि, दु:स्थान, बालत्व दोष या वृद्ध दोष, शत्रु राशि या अशुभ ग्रह के प्रभाव में
हो तो ऎसा अस्त ग्रह, ग्रह
कोढ़ में खाज का काम करने लगता है। उसके फल और भी निकृष्ट मिलने लगते हैं अत: किसी
कुण्डली के फल निरूपण में अस्तग्रह का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए।*
*अस्त
ग्रह की दशान्तर्दशा में कोई गंभीर दुर्घटना, दु:ख या बीमारी आदि हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में
कोई शुभ ग्रह यथा बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त होते हैं तो अस्तंगतता के परिणाम और भी गंभीर रूप से
मिलने लगते हैं। कई कुण्डलियों में तो देखने को मिलता है कि किसी एक शुभ ग्रह के
पूर्ण अस्त हो जाने मात्र से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही अभावग्रस्त हो जाता है और
परिणाम किसी भी रूप में आ सकते हैं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, किसी पैतृक संपत्ति का नष्ट हो जाना, शरीर का कोई अंग-भंग हो जाना या किसी
परियोजना में भारी हानि होने के कारण भारी धनाभाव हो जाना आदि। यह भी देखा जाता है
कि यदि कोई ग्रह अस्त हो परंतु वह शुभ भाव में स्थित हो जाए अथवा उस पर शुभ ग्रह
की दृष्टि हो तो अस्तग्रह के दुष्परिणामों में कमी आ जाती है।*
*यदि
किसी व्यक्ति की कुण्डली में लग्नेश अस्त हो और इस अस्त ग्रह पर से कोई पाप ग्रह
संचार करे तो फल अत्यंत प्रतिकूल मिलते हैं। यदि कोई ग्रह अस्त हो और वह पाप
प्रभाव में भी हो तो ऎसे ग्रह के दुष्परिणामों से बचने के लिए दान करना श्रेष्ठ
उपाय होता है। किसी ग्रह के अस्त होने पर ऎसे ग्रह की दशा-*
*अन्तर्दशा
में अनावश्यक विलंब, किसी
कार्य को करने से मना करना अथवा अन्य प्रकार के दु:खों का सामना करना प़डता है।
यदि व्यक्ति की कुण्डली में कोई ग्रह सूर्य के निकटतम होकर अस्त हो जाता है तो ऎसा
ग्रह बलहीन हो जाता है।*
*उदाहरण
के लिए विवाह का कारक ग्रह यदि अस्त हो जाए और नवांश लग्नेश भी अस्त हो तो ऎसा
व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब, सुंदर
हो या कुरूप, ल़डका
हो या ल़डकी निस्संदेह विवाह में विलंब कराता है। यदि इन ग्रहों की दशा या
अन्तर्दशा आ जाए तो व्यक्ति जीवन के यौवनकाल के चरम पर विवाह में देरी कर देता है
और वैवाहिक सुखों (दांपत्य सुख) से वंचित हो जाता है जिसके कारण उसे समय पर संतान
सुख भी नहीं मिल पाता और वैवाहिक जीवन नष्ट सा हो जाता है। अब हम ग्रहों के अस्त
होने पर उनके सामान्य फलों पर विचार करते हैं कि किसी ग्रह विशेष के अस्त हो जाने
पर उनकी अंतर्दशा में कैसे परिणाम आते हैं-*
*चंद्रमा
:*
*किसी
व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा के अस्त होने पर मानसिक अशांति, माँ का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, जन सहयोग का अभाव, व्यक्ति का अशांत हो जाना, दौरे आना, मिर्गी होना, फेफ़डों में रोग होना आदि घटनाएं होती
है। यदि अस्त चंद्रमा अष्टमेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति दीर्घकाल तक
अवसादग्रस्त रहता है, इसी
प्रकार द्वादशेश के प्रभाव में आने पर व्यक्ति नशे का आदि हो जाता है अथवा किसी
बीमारी की निरंतर दवा खाता है।*
*मंगल
:*
*किसी
व्यक्ति की कुण्डली में मंगल के अस्त होने पर उसकी अंतर्दशा में व्यक्ति क्रोधी, नसों में दर्द, रक्त का दूषित हो जाना, उच्चा अवसादग्रस्तता आदि कष्ट हो जाते
हैं। यदि अस्त मंगल पर राहु/केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति दुर्घटना, मुकदमेंबाजी या कैंसर का शिकार हो जाता
है। यदि मंगल षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो अस्वस्थ्य, दूषित रक्त, कैंसर या विवाद में चोटग्रस्त हो जाता
है। इसी प्रकार अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति घोटालेबाज हो जाता है, भष्टाचार में लिप्त रहता है। द्वादशेश
के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ का सेवन करने लगता है।*
*बुध
:*
*अस्त
बुध की अंतर्दशा में व्यक्ति भ्रमित, संवेदनशील, निर्णय
लेने में विलंब करता है। अति विश्वास या न्यून विश्वास का शिकार होकर तनावग्रस्त
हो जाता है, अशांत
रहता है। उसके शरीर में लकवा, ऎंठन, श्वास रोग अथवा चर्म रोग हो जाते हैं।
यदि अस्त बुध षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति तनाव, चर्म रोग या लकवाग्रस्त होकर अस्वस्थ
रहता है। यदि बुध अष्टमेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दमा रोग से ग्रसित, मानसिक अवसाद अथवा किसी प्रियजन की
मृत्यु का शोक भोगता है। यदि बुध द्वादशेश के पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति किसी
नशे का शिकार या रोगग्रस्त रहता है।*
*बृहस्पति
:*
*यदि
किसी व्यक्ति की कुण्डली में बृहस्पति अस्त हों और बृहस्पति की अंतर्दशा आ जाए तो
व्यक्ति लीवर की बीमारी और ज्वर से ग्रसित रहता है। वह अध्ययन से कट जाता है। उसकी
आध्यात्मिक रूचि क्षीण हो जाती है,
वह स्वार्थी हो जाता है। यदि अस्त बृहस्पति पर अन्य दूषित प्रभाव हों
तो वह पुरूष संतान से वंचित हो सकता है। बृहस्पति के षष्ठेश के पाप प्रभाव में
होने पर उच्चा ज्वर, टायफाइड, मधुमेह तथा मुकदमों में फँसना, अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर
प्रतिष्ठा में हानि, किसी
प्रियजन का वियोग अथवा किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाना, इसी प्रकार द्वादशेश के पाप प्रभाव में
होने पर व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बन जाते हैं और वह किसी व्यसन से ग्रसित हो
जाता है।*
*शुक्र
:*
*जब
किसी कुण्डली में शुक्र अस्त हो और उसकी अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति की पत्नी
रोगग्रस्त हो जाती है अथवा उसके गर्भाशय या बच्चोदानी में समस्या हो जाती है।
व्यक्ति नेत्र रोग, चर्म
रोग से भी ग्रसित हो जाता है। अस्त शुक्र के राहु-केतु के प्रभाव में आने पर व्यक्ति
की प्रतिष्ठा नष्ट होती है, वह
किडनी विकार या मधुमेह का शिकार हो जाता है। यदि अस्त शुक्र षष्ठेश के दुष्प्रभाव
में हों तो मूत्राशय रोग, यौनांगों
में विकार अथवा चर्म रोग से ग्रसित होता है, अष्टमेश के दुष्प्रभाव में होने पर दांपत्य जीवन में कटुता, किसी प्रियजन की मृत्यु का दु:ख तथा
द्वादशेश के दुष्प्रभाव में होने पर व्यक्ति यौन संक्रमण रोग और नशे का आदि हो
जाता है।*
*शनि
:*
*यदि
किसी व्यक्ति की कुण्डली में शनि अस्त हो और उनकी दशा-अन्तर्दशा आ जावे तो वह
अस्थि भंग होने, टांगों
या पैरों में दर्द, रीढ़
की हड्डी में दर्द आदि से पीडित रहता है। उसे कठोर परिश्रम करना प़डता है, उसका कार्य व्यवहार नीच प्रकृति के
लोगों से रहता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है। शनि के राहु-केतु
से प्रभावित होने पर जो़डो में दर्द रहने लगता है। अस्त शनि के षष्ठेश के पाप प्रभाव
में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, जोडों में दर्द, शरीर
में जक़डन रहने लगता है, मुकदमों
का सामना करना प़डता है।*
*अस्त
शनि के अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर अस्थि टूट जाने, रोजगार में समस्या अथवा किसी प्रियजन
का अभाव हो जाना होता है। शनि के द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी
बीमारी से ग्रस्त रहने लगता है अथवा व्यसन में डूब जाता है।*
*आईये
जानते है सूर्य के कितना समीप आने पर कौन सा ग्रह अस्त होता है -*
*चन्द्रमा
जब सूर्य से 12
अंश या इससे अधिक समीप आता है तो अस्त हो जाता है।*
*गुरू
जब सूर्य से 11
अंश या इससे अधिक समीप पर आने पर स्वतः अस्त हो जाता है।*
*सूर्य
से 13 अंश या इससे
अधिक समीप आने पर बुध ग्रह अस्त हो जाता है। किन्तु यदि बुध वक्री है तो वह सूर्य
से 11 अंश के आस-पास
आने पर अस्त हो जाता है।*
*सूर्य
से 09 अंश या इससे
अधिक समीप आने पर शुक्र ग्रह अस्त हो जाता है। यदि शुक्र वक्री चल रहा है तो वह
सूर्य से 7
अंश या इससे अधिक समीप आने पर अस्त हो जायेगी।*
*सूर्य
से 15 अंश या इससे
अधिक समीप आने पर शनि ग्रह अस्त हो जाता है।*
*सूर्य
से 7 अंश या इससे
अधिक समीप आने पर मंगल ग्रह अस्त हो जाता है।*
*राहु-केतु
छाया ग्रह होने के कारण कभी भी अस्त नहीं होते है l*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें