रविवार, 30 अप्रैल 2017

10 प्रमुख राजयोग



अगर आपकी कुंडली में इन 10 प्रमुख राजयोग मे से एक भी है तो बस फिर देखिये कैसे आपको मिलता है धन, ऐश्वर्य और मान-सम्मान!!




ज्योतिषशास्त्र में कई शुभ योगों का जिक्र किया गया है। कुछ शुभ योगों को राजयोग की श्रेणी में रखा गया है। कुण्डली में राजयोग होने पर व्यक्ति को सुख-सम्पत्ति मान-सम्मान एवं ख्याति मिलती है ऐसी ज्योतिषशास्त्र की मान्यता है। इन्हीं कारणों से लोगों में यह जानने की उत्सुकता रहती है कि क्या उनकी कुण्डली में राजयोग है।
क्या होता है राजयोग
राजयोग का अर्थ होता है कुंडली में ग्रहों का इस प्रकार से मौजूद होना की सफलताएं, सुख, पैसा, मान-सम्मान आसानी से प्राप्त हो। जिन लोगों की कुंडली में राजयोग होते हैं, उन्हें सभी सुख-सुविधाएं मिलती हैं और वे शाही जीवन व्यतीत करते हैं। यहां जानिए कुंडली के 10 प्रमुख राजयोग।
अगर आपकी कुंडली में इन 10 प्रमुख राजयोग मे से एक भी है तो बस फिर देखिये कैसे आपको मिलता है धन, ऐश्वर्य और मान-सम्मान!!

1.लक्ष्मी योग- कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है। मान-सम्मान मिलता है। सामजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।

2.रूचक योग- मंगल केंद्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (पहला, पांचवा और नवा भाव), स्वग्रही (मेष या वृशिचक भाव में हो तो) अथवा उच्च राशि (मकर राशि) का हो तो रूचक योग बनता है। रूचक योग होने पर व्यक्ति बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति विशेष पद प्राप्त करता है।

3.भद्र योग- बुध केंद्र में मूल त्रिकोण स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो)अथवा उच्च राशि (कन्या) का हो तो भद्र योग बनता है। इस योग से व्यक्ति उच्च व्यवसायी होता है। व्यक्ति अपने प्रबंधन, कौशल, बुद्धि-विवेक का उपयोग करते हुए धन कमाता है। यह योग सप्तम भाव में होता है तो व्यक्ति देश का जाना माना उधोगपति बन जाता है।

4.हंस योग- बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग व्यक्ति को सुन्दर, हंसमुख, मिलनसार, विनम्र और धन-सम्पति वाला बनाता है। व्यक्ति पुण्य कर्मों में रूचि रखने वाला, दयालु, शास्त्र का ज्ञान रखने वाला होता है।

5.मालव्य योग- कुंडली के केंद्र भावों में स्तिथ शुक्र मूल त्रिकोण अथवा स्वगृही (वृष या तुला राशि में हो) या उच्च (मीन राशि) का हो तो मालव्य योग बनता है। इस योग से व्यक्ति सुन्दर, गुणी, तेजस्वी, धैर्यवान, धनी तथा सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है।
6.शश योग- यदि कुंडली में शनि की खुद की राशि मकर या कुम्भ में हो या उच्च राशि (तुला राशि) का हो या मूल त्रिकोण में हो तो शश योग बनता है। यह योग सप्तम भाव या दशम भाव में हो तो व्यक्ति अपार धन-सम्पति का स्वामी होता है। व्यवसाय और नौकरी के क्षेत्र में ख्याति और उच्च पद को प्राप्त करता है।

7.गजकेसरी योग- जिसकी कुंडली में शुभ गजकेसरी योग होता है, वह बुद्धिमान होने के साथ ही प्रतिभाशाली भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली भी होता है। समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते है। शुभ योग के लिए आवश्यक है कि गुरु व चंद्र दोनों ही नीच के नहीं होने चाहिए। साथ ही, शनि या राहु जैसे पाप ग्रहों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
8.सिंघासन योग- अगर सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवे और बारहवे घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।

9.चतुःसार योग- अगर कुंडली में ग्रह मेष, कर्क तुला उर मकर राशि में स्तिथ हो तो ये योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति इच्छित सफलता जीवन में प्राप्त करता है और किसी भी समस्या से आसानी से बाहर आ जाता है।

10.श्रीनाथ योग- अगर लग्न का स्वामी, सातवे भाव का स्वामी दसवे घर में मौजूद हो और दसवे घर का स्वामी नवे घर के स्वामी के साथ मौजूद हो तो श्रीनाथ योग का निर्माण होता है। इसके प्रभाव से जातक को धन, नाम, ताश, वैभव की प्राप्ति होती है।

विशेष
कुंडली में राजयोग का अध्ययन करते वक़्त अन्य शुभ और अशुभ ग्रहो के फलों का भी अध्ययन जरुरी है। इनके कारण राजयोग का प्रभाव कम या ज्यादा हो सकता है।
कैसे राजयोग को मजबूत किया जा सकता है?

 
अगर कुंडली में राजयोग हो और वो कमजोर हो तो नव रत्नों की सहायता से, मंत्र जप आदि करके भी जीवन को सफल बनाया जा सकता है। साथ ही यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए की राज योग नहीं होने पर भी व्यक्ति बहुत सफल हो सकते है अगर कुंडली में ग्रह शुभ और शक्तिशाली हो।

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

वामपंथ की सरलतम व्याख्या

घृणित वामपंथ की सरलतम व्याख्या
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एक गुरूजी जी अपने शिष्यों के साथ एक पहाड़ी से गुजर रहे थे। एक तरफ देखा तो एक शानदार बंगला बन रहा था। बाबा जी के मुंह से निकला,. "अहा, यहाँ प्रकृति की गोद में बंगला बनवा के रहने वाला कितना भाग्यशाली होगा।"

एक शिष्य ने आगे बढ़ कर कहा,.. "लेकिन गुरु जी, आप जरा ध्यान से देखें, तो दिखेगा कि बंगले के आस पास छोटी छोटी झोंपड़ियाँ हैं। इनमें रहने वाले लोग गरीब हैं। ये बड़ा मकान इन झोंपड़ियों को छोटा करके ही बना है। उस बंगले में रहने वाले सेठ ने इन गरीबों का हक़ मारकर ही इतनी संपत्ति अर्जित की है। अगर यह बड़ा मकान ना होता तो सारे झोंपड़े बड़े होते। माओवाद, साम्यवाद, मार्क्सवाद ये कहता है कि इस बंगले को तोड़ कर इन गरीबों में बाँट देना चाहिए।"
गुरुजी बहुत जोर से चौंके,.. फिर शिष्य से पूछे,. "अच्छा??, और ये दिव्य ज्ञान तुम्हें कहाँ से मिला?"
शिष्य ने कहा,.. "गुरुजी, पिछले जिले में भ्रमण के दौरान जब मैं कुछ आवश्यक सामग्री खरीदने बाजार गया,.. तो वहां एक गरीबों का नेता आया हुआ था। वही एक स्टेज पर चढ़कर सबको ये बता रहा था, और उसकी बातें इतनी सत्य लग रही थीं कि लोग दिलचस्पी से सुन रहे थे। उसने कहा कि,.. "ये अमीरों का ही खेल है, वे हमारी ही संपत्तियां लूट कर हमें ही गुलाम बना कर रखते हैं। इन अमीरों के हाथों से सबकुछ छीन कर, हमें गरीबों में बांटना है, यही हमारा संकल्प है।"अपने वक्तव्य के अंत में उसने प्रभावित अंदाज में चिल्ला कर कहा,.. "हम लड़ेंगे साथी, हम मरते दम तक लड़ेंगे,.. लाल सलाम।" और उसके इस नारे के बाद उपस्थित भीड़ मदहोश होकर,.. लाल सलाम,.. लाल सलाम के नारे लगाने लगी।
गुरूजी मुस्कुराये,.. और बोले,. "अच्छा, मुझे इतनी गूढ़ बातें नहीं पता थीं। चलो चलकर सामने उन झोंपड़ी वालों से मिलते हैं, जरा जानने की कोशिश करते हैं कि,.. इस बड़े बंगले वाले ने कितने जुल्म ढाए हैं इनपर? कितना कुछ लूट लिया है इनका?"
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गुरूजी को घेर कर बैठ गए थे झोंपड़ी वाले। ....गुरूजी ने शिष्य से हुई सारी बात उन गरीबों को बता कर पूछा,.. "अब आपलोग बताइए, इस बड़े बंगले वाले सेठ की क्या कहानी है? इसने कितना लूटा है आपलोगों को?"
उन झोंपड़ी वालों की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गईं। एक बूढ़ा खड़ा हुआ और एक तरफ ऊँगली दिखा कर कहने लगा,.. "बाबा, हम लोग उस पहाड़ के पीछे रहते हैं। हम लोग भेंड़ बकरी पालते थे, और उन्हीं का दूध वगैरह शहर में बेंच कर अपना जीवन यापन करते थे। एक दिन एक हमारा जान पहचान का ठेकेदार आया। वो पहले भी हमें काम दिलवा चुका था, उसने कहा कि शहर में रहने वाले एक सेठ ने अपने बुढ़ापे के लिए कुछ जमीन खरीदा है। वहां वो एक बंगला और मंदिर बनवाना चाहता है। तुमलोगों को काम करना है तो बोलो, जो ठीक मजदूरी होगी वो मिल जाएगी।"
अब बाबा, हमें और क्या चाहिए था? हम यहाँ आ गए, और इस बंगले के बनने में मदद करने लगे। रोज के रोज हमारी मजदूरी मिल जाती है, और कभी कभी तो जब सेठ जी आते हैं, तो अपनी तरफ से बढियां भोज भी कराते हैं। अब इसमें कहाँ से उन्होंने हमारी जमीन हड़प ली, कहाँ से उन्होंने हमारे पैसे लूट लिए? किसी भी दिन हमपर कोई जुल्म भी नहीं हुआ। और अगर जुल्म होता भी, तो हम यहाँ काम ही क्यों करते? हम ये सब छोड़ छाड़ के चल नहीं देते?"
"अरे बाबा, इस बड़े बंगले की वजह से ही तो वजूद है हमारी झोंपड़ियों का। ये बंगला है तो हम हैं, ये बंगला नहीं होता तो हम यहां क्यों होते?? "
गुरूजी ने मुस्कुराते हुए कहा,.. "हम ही गलत समझ बैठे थे। हमें क्षमा करियेगा।" कहकर उन गरीबों को धन्यवाद दिया और अपनी मण्डली के साथ चल दिए।
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गुरूजी ने उस शिष्य से पूछा,.. "कुछ समझ आया?"
शिष्य मुस्कुरा के बोला,.. "गुरुजी यहाँ की बात तो समझ गया। मैं समझ गया कि बहुत ही साधारण सा यह रिश्ता है विक्रेता (मजदूर) और ग्राहक (सेठ) के बीच। सही बात है कि जब मजदूरों को उनकी मजदूरी के पैसे सेठ दे ही रहा है, तो दिक्कत, शोषण जैसा कुछ है ही नहीं। लेकिन उलझन ये है कि फिर वो गरीबों, मजदूरों का नेता,.... इन दोनों के बीच कहाँ से फिट हो रहा है?"
गुरूजी ने भी मुस्कुराते हुए कहा,.. "वो सेठ अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर ढेर सारा पैसा कमाया। इन पैसों से मजदूर को मजदूरी के पैसे देकर और ज्यादा धन कमाया। एक विशालकाय घर, मंदिर, पुल, सड़क इत्यादि के निर्माण में सिर्फ ईंट ढोने वाले मजदूर नहीं होते हैं, उनमें उनका सुपरवाईजर भी होता है, मिस्त्री भी, माल ढोने वाला ट्रेक्टर चालक भी, इंजिनियर, आर्किटेक्ट इत्यादि बहुत से लेवल के लोग जुड़ते हैं। ये सब एक तरह से मजदूर ही हैं, और सबको अपनी योग्यतानुसार मजदूरी मिलती है।
लेकिन दुनिया में एक कौम होती है, जो पैदायशी धूर्त और मक्कार होते हैं। इनको कोई मेहनत का काम करके पैसा कमाना नहीं आता है। ये जोंक की तरह परजीवी होते हैं। इनका काम होता है एक दुसरे को उकसा कर लडाना, और दोनों से अपना फायदा उठाना। वो पहले कई महीनों तक सधे हुए पैंतरों से,.. कम दिमाग वालों को अपने जाल में फंसाते हैं। ऐसे ही सेठों, फैक्ट्री मालिक, सरकार के खिलाफ उनको भड़काते हैं। इस भड़काने में कई धूर्तता वाली चालें चलते हैं। जैसे किसी मजदूर की बेटी का चुपके से रेप करके उन्हें मार देना, और फिर इल्जाम सेठ पर डाल देना।
अब सेठ तो रोज रोज अपने को सही साबित करने आएगा नहीं। ...अगर पुलिस में केस भी होगा, प्रथम जाँच में ही पुलिस को पता चल जायेगा कि,.. ये सेठ का काम नहीं है, और पुलिस उस सेठ को छोड़ देती है। और ऐसा होते ही ये वामपंथी, एक बाजारू औरत की तरह ताली बजाते हुए मजदूर से कहेंगे कि,.. "देखा, मैंने कहा था ना कि ये सेठ लोगों से,.. पुलिस और शासन, प्रशासन सब मिले होते हैं।
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अब फिर ऐसे अनपढ़ मजदूरों को भड़का कर, उन्हें हथियार पकड़ा कर घोषित अपराधी बना देते हैं। फिर उसी सेठ के पास जाते हैं, और कहते हैं कि तुमको हमारे साथी उठा लेंगे, तुम्हारी फैक्ट्री, घर सब जला देंगे। नहीं तो इतना पैसा दो, और मौज करो। अब बेचारा सेठ क्या करेगा? मजबूरन उसको पैसा देना पड़ता है जिसको ये वामपंथी अपने NGO के द्वारा ले लेते हैं। अब उस आधे पैसे से इनकी मंहगी शराब और ऐयाशियों चलती हैं, तथा कुछ पैसे से हथियार खरीद कर ये फिर से उन मजदूरों को माओवादी बना कर उनके बीच बाँट देते हैं। और ये चक्र चलता ही रहता है, जब तक कि चीन के जैसे कोई दृढ़ विचारों वाली पार्टी सत्ता में आकर इनका समूल नाश ना कर दे।
जरा सोचो तो कितना बढ़िया धंधा है ये। खुद रहना है दिल्ली के पॉश कॉलोनियों में, और जंगलों में लड़ते वही मजदूर और प्रशासन हैं, मरते भी वही हैं। लेकिन इन वामपंथियों की मौज बनी रहती है इस उगाही और ऐसे ही और धंधों से, .....हींग मिले ना फिक्टरी, और रंग भी चोखा होय..! उन्हीं माओवादियों (नक्सलियों) के सेना, पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मर जाने पर,.. उनको मजदूर बता कर सरकार पर दबाव बनाने की नौटंकी भी करते हैं। क्योंकि सरकार पर दबाव बनेगा, तो सरकार विकास से पीछे हटेगी। सरकार पीछे हटेगी तो देश की प्रगति रूकती है। देश की प्रगति रूकती है, तो पडोसी दुश्मन देश हमारे देश से आगे निकल जाते हैं। ....इसीलिए ये दुश्मन देश भी इनके NGO को पैसा, हथियार देते रहते हैं, जिससे ये वामपंथी नामक जोंकें और फलती फूलती मोटी होती हैं, तथा दुगने रफ़्तार से खून चूसती हैं।
इन जोंकों का कोई सगा नहीं होता है। बहुत बार तो सरकार पर दबाव बनाने के लिए, अपनी साथी किसी जोंक को, जो इनकी असलियत जान लेता है, जैसे रोहित वेमुल्ला,.. इत्यादि को ही मारकर सरकार पर इल्जाम लगा देते हैं। इनके शासन काल के दौरान, पश्चिम बंगाल में ऐसे कितने लोग गुमनाम मर गए जिनकी लाशें तक नहीं मिलीं। एक स्ट्रिंग ऑपरेशन में इनका ही एक नेता एक बार कबूल रहा था,.. गड्ढा खोद कर उसमें बॉडी डाल कर ऊपर से नमक डाल देते हैं, हड्डियाँ तक गल जाती हैं। ...और इस कबूलनामे के बाद उसकी खुद की बॉडी का पता नहीं चला।
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वत्स, इन जोंकों से दूर रहो, इनका इलाज यही है कि जहाँ दिखें इनको कठोर जूतों से मसल दो। इनसे बहस मत करो, क्योंकि इन्होने अपनी सारी जिन्दगी कुतर्कों में ही गुजारी होती है। आप पढ़ लिख कर डॉक्टर इंजीनियर, दुकानदार, सेठ बनते हैं,... लेकिन ये JNU जैसे संस्थानों से जोंकगिरी ही सीख कर बाहर आते हैं, वामपंथ ही सीख कर आते हैं। बिना कुछ मेहनत किये, बैठ के ऐयाशी कैसे की जाय, उसी के तर्क सीख कर आते हैं। ...लेकिन ये भी सच है कि इनकी मौत भी ऐसी ही होती है। इनके खुद के बीबी बच्चे छोड़ कर चले जाते हैं, और एक दिन नकारा होने के बाद इन्हीं के साथी इनको क्रांति के नाम पर कुर्बान कर देते हैं।
अगर ये सच में आदिवासियों, पिछड़े और दलितों के उत्थान, उनकी प्रगति के लिए काम करने का जज्बा रखते, तो पश्चिम बंगाल में 30-35 साल की "निर्विरोध" वामपंथी सरकार के शासन के दौरान, अब तक पश्चिम बंगाल दुनिया का सबसे ज्यादा विकसित राज्य बन चुका होता !! जबकि एक बार एक ट्रक वाले ने सच्चाई बताया था, कि बंगाल में इतनी गरीबी है कि "एक आम" के बदले बंगाली लड़कियां अपने जिस्म तक का सौदा कर लेती हैं !!
(दोस्तों, चाहें तो कॉपी पेस्ट करके अपनी वाल पर भी लगा सकते हैं ये पोस्ट!!)
अक्षत बिंदासबोल

रविवार, 23 अप्रैल 2017

samvad-------भैंस गाय



इस कविता के लिखने वाले को सलाम.....


बोली भैंस गाय से बहना, मुझको भी कुछ सिखलाओ।

क्यों माता माता बोलें नर तुमको, मुझको भी बतलाओ।।

जाति धर्म में पड़कर , जो निशदिन लड़ते रहते हैं।
निज मां का सम्मान नहीं,पर तुमको माता कहते हैं।।

खेल कौन खेला है तुमने, वशीभूत किया है कैसे।
मदिरा के शौकीन पुरुषो ने, तेरा मूत्र पिया है कैसे।।

मेरी समझ से बाहर है सब, कुछ तो मुझको बतलाओ।
कौन सियासत खेली तुमने, आज मुझे भी समझाओ।।

जो गुण तुझमें वो गुण मुझमें, फिर क्यों मेरा सम्मान नहीं।
दूध,दही,घी,चमड़ा सबकुछ, दिया मैने क्या सामान नहीं।।

तेरी हरदम पूजा होती, फल फूल चढ़ाए जाते हैं।
वेद पुराण आदि में, तेरे ही किस्से क्यों पाये जाते हैं।।

तेरे मरने पर भी शहरों में, क्यों कोहराम मचाते हैं।
मेरे मरने पर तो मुझको चील और कौवे ही खाते हैं।।

सारी बुद्धि खोल दी मैंने पर समझ नहीं कुछ आया है।
दूध दिया तुझसे ज्यादा, फिर भी आगे तुझको पाया है।।

बोली गाय प्रेम से , फिर सुन लो बहना भैंस कुमारी।
तुमसे कैसी राजनीति, तुम तो हो प्रिय बहन हमारी।।

नवजात बच्चियों को जो पैदा होते ही मार गिराते हैं।
दहेज की खातिर गृह लक्ष्मी को जिंदा लाश बनाते हैं।।

नारी देह को सड़कों पर, जो नोंच-नोंच कर खाते हैं।
अपनी माँ को मॉं नहीं कहते, मुझको मॉं बताते हैं।।

ऐसे झूठे मक्कार और कपूतो की, मैं मॉं कैसे हो सकती हूँ।
इन नर पिशाचों की खातिर,अपना पशुत्व कैसे खो सकती हूँ।।

मेरी प्यारी बहना समझो, ये इनके हथकंडे हैं।
राजनीति को चमकाने के,ये तो सारे फंडे हैं।।

वैसे तो मां कहते मुझको, पर घर में मेरा ठौर नहीं।
दौर बहुत देखे हैं मैंने, पर इससे घटिया दौर नहीं।।

बहना तेरे आगे तो बीन बजाएं, मेरे पिछवाडे देते लाठी।
दूध निकालकर सडक पर छोडें, मैला तक भी मैं खाती ।।

मॉं कहने वालो ने आजतक, कभी मुझको नहीं पाला है।
अपनी मॉं वृद्धाश्रम छोडें, उनके लिए नहीं निवाला है।।

फिरती हूं गली गली आवारा, सबके लाठी डंडे खाती हूँ।
तिल तिल कर मरती रहती हूं, तब भी मॉं कहलाती हूँ।। 😢😢😢copied