शनिवार, 31 दिसंबर 2016

प्रत्येक देवता के हाथ में शंख-कारण




प्रत्येक देवता के हाथ में शंख-कारण

शंख का जो रासायनिक संयोग है वह अर्कट, मेवाड़ी, सुपंखी, प्रवाश्म, लौह, शिलामंडूर, एवं चिपिलिका है. शंख पांच प्रकार के होते है.
वामावर्ती, दक्षिणावर्ती, हेममुख, पुन्जिका एवं नारायण. इसमें वामावर्ती पूजा, यज्ञ आदि में, दक्षिणावर्ती अन्तः औषधि के रूप में, हेममुख बाह्य औषधि के रूप में, पुन्जिका विशानुघ्ना एवं नारायण दर्शन के लिये.
हेम मुख एवं नारायण शंख में मुँह कटा नहीं होता है. नारायण शंख भी दक्षिणावर्ती ही होता है. किन्तु इसमें पांच या इससे अधिक वक्र चाप होते है. पांच से कम चाप वाले को दक्षिणावर्ती शंख कहते है.
इनमें से प्रत्येक शंख बिल्कुल स्वच्छ एवं शुभ्र वर्ण का होता है. नारायण एवं दक्षिणावर्ती शंख बिल्कुल चिकने, बिना किसी चिन्ह एवं आयतन के अनुपात में भार साथ गुणा होता है.
जब कि वामावर्ती अपने आयतन के अनुपात में बीस गुणा कम भार का होता है. हेम मुख का काठिन्य या रासायनिक घनत्व इसके परिमाण क़ी तुलना में 1 :2 का अनुपात रखता है.
शंख के घटक तत्व अपने निर्माण में वृद्धि या ह्रास के चलते ज्यादा या अल्प प्रभाव वाले होते है. जैसे पुन्जिका शंख में प्रवाश्म (क्लोरोमेंथाज़िन) साठ प्रतिशत होता है.
इसे घर में रखने से खाने पीने क़ी चीजो में सडन नहीं होती है. किन्तु माँस मछली या इस तरह के भोज्य पदार्थ से निकलने वाली सिलिफोनिक टेट्रा मेंडाक्लीन या ट्राईमेंथिलिकेट हाइड्राक्सायिड का रासायनिक समायोजन एसिटिक डिक्लोफेनिक एसिड, कार्बोमेंट्राजिन होजोल, पैराफ्लेक्सी मेट्रोब्रोमायिड, टरमेरिक एसिड, टार्टारिक एसिड आदि के संयोग से पुन्जिका शंख का क्लोरोमेंथाजिन फ्रोक्सोज़ोनिक गुआनायिड या फफूंद में बदल जाता है.
और समस्त भोज्य पदार्थ दूषित हो जाता है. चूंकि यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से होती है, अतः इसका अनुमान या आभास नहीं हो पाता है. इसके अलावा घर में सूक्ष्म विषाणु प्रवेश नहीं पाते है. या मोटे शब्दों में फंगस ड़ीजीजेज या संक्रामक बीमारियों का खतरा समाप्त हो जाता है.
इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को घरो में इस शंख को रखना चाहिए. किन्तु किसी भी शंख को यदि घर में रखना हो तों उसे नित्य प्रति धोना पडेगा. तथा उसमें पानी भर कर रखना पडेगा.
वायु पुराण (बम्बई प्रेस) में अनेक स्थानों पर इसका विवरण दिया गया है. कहते है कि उत्तरा के गर्भ में परीक्षित क़ी रक्षा करने के लिये भगवान वासुदेव गर्भ में घुस कर अश्वत्थामा के तार्क्ष्य अस्त्र के प्रभाव से बचाने के लिये पुन्जिका शंख को उत्तरा के सिरहाने रख कर उसकी रक्षा करते रहे.
जो विषाणु उस अस्त्र से उत्पन्न हो गये थे. उन्हें भगवान अपने चक्र एवं गदा से समाप्त करते रहे. और पुन्जिका शंख के प्रभाव से नए विषाणुओं का उत्पन्न होना रुक गया था. कुंडली में नीलार्धिका या ऐसे ही दुर्योग के होने पर इस शंख का सहयोग विधान है.
हेम मुख शंख में फेनासिलिक लिनियोडायिड अपने अन्य अवयओं के साथ उपस्थित होता है. इसे आयुर्वेद में प्राक्दोलिक क्षार कहते है. यह एक बहुत ही सघन प्रभाव वाला विष एवं अनूर्जता अवरोधी पदार्थ होता है.
वात वाहिनियो पर इसका बहुत ही अच्छा प्रभाव होता है. शिरो रोग में भी यह बहुत विकट प्रभाव दिखाता है.कुंडली में परान्जलिका, सायुज्य उल्का, भ्रान्दुप, अन्कालिक आदि दुर्योग या गुरु-शनि कृत दोष के भय के शमन हेतु इसका प्रयोग किया जाता है.


इसे स्वच्छ पत्थर पर घिस कर सिर पर नियमित रूप से लगाने पर अर्ध कपारी जैसा दुर्गम रोग भी शांत हो जाता है.
कहते है शुक्राचार्य अपने शिष्यों क़ी दुर्वृत्ती से सदा दुखी रहा करते थे. राक्षस माँस-मदिरा का बहुतायत में सेवन करते थे. इनके दुष्प्रभाव को रोक कर उन्हें स्वस्थ रखने के लिये शुक्राचार्य इस शंख के लेप का प्रयोग करते थे.
इसी प्रकार दक्षिणावर्ती शंख कैल्सीफ्लेमाक्सीडीन ग्लिमोक्सिलेट का मिश्रण होता है. शरीर के चार आतंरिक अँग इससे ज्यादा प्रभावित होते है.
आलिन्द-हृदय का एक भाग, प्लीहा, पित्ताशय एवं तिल्ली (Spleen) . किन्तु इसको घर में रखने से पहले बहुत एहतियात रखना पड़ता है. यह एक उच्च उत्प्रेरक होता है.
अतः यदि कुंडली में किसी भी तरह सूर्य एवं राहू अच्छी स्थिति में हो तों इसे घर में न रखें. अन्य स्थिति में यह सुख शान्ति दायक, मनोवृत्ती को सदा सुव्यवस्थित रखते हुए तंत्रिका तंत्र को सदिश एवं सक्रिय रखता है.
नारायण शंख के रासायनिक तत्वों का सही वर्गीकरण उपलब्ध नहीं है. किन्तु ऐसा लगा है कि इसमें डेकट्राफ्लेविडीन सेंथासीनामायिड जैसा यौगिक उपस्थित होता है.
यह एक उच्च स्तरीय परिपोषक है. इसमें इतनी क्षमता है कि आनुवांशिक अवयवो तक को इच्छानुसार बदल सकता है. जो विज्ञान के लिये अभी अब तक एक पहेली बना हुआ है.
कुंडली में घोर विषकन्या, स्थूल मांगलिक, विषघात, एवं देवदोष जो राहू, शनि, मंगल तथा सूर्यकृत दुष्प्रभाव के कारण उत्पन्न होते है, सब दूर हो जाते है.
ताम्र पट्टिका पर गोमुखी विधि से बने श्रीयंत्र के ऊपर नारायण शंख एवं पारद शिवलिंग घर में रखने से कितना क्या मिल सकता है, इसका सीमा निर्धारण कही भी नहीं प्राप्त होता है. अर्थात यह योग एक अक्षुण एवं अमोघ फल देने वाला योग माना गया है.
ध्यान रहे, शंख को भली भांति परख कर ही अपनाएं. क्योकि आज कल अनेक नकली शंख बाज़ार में बिकने लगे है.
//शंख ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश
प्राचीन ग्रन्थ शंखकल्प संहिताऔर सभी आध्यात्मिक ग्रंथों, पौराणिक मतों के अनुसार देवताओं और दानवों ने अमृत की खोज के लिए मंदराचल पर्वत की मथानी से क्षीरसागर मंथन किया, उससे 14 प्रकार के रत्न प्राप्त हुए।
आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ जिसमें तथा मुख्य दक्षिणावर्ती शंख, गोमुखी शंख और भी कई प्रकार के शंख प्राप्त हुए। प्रतिदिन घर में शंखनाद करने से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। शंख ध्वनि से सूक्ष्म जीवाणुओं का नाश होता है। शंख में पंच तत्वों का संतुलन बराबर बनाए रखने की प्रचुर क्षमता होती है।
ऐरावत शंख : ऐरावत शंख का उपयोग मनचाही साधना सिद्ध को पूर्ण करने के लिए और शरीर की सही बनावट, रूप रंग को और निखारने के लिए किया जाता है। प्रतिदिन इस शंख में जल डाल कर उसे ग्रहण करना चाहिए। शंख में जल प्रतिदिन 24 – 28 घण्टे तक रहे और फिर उस जल को ग्रहण करें, तो चेहरा कांतिमान होने लगता है।
श्री गणेश शंख : इस शंख की आकृति भगवान श्री गणेश की तरह ही होती है। यह शंख दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति का कारक होता है।
अन्नपूर्णा शंख : अन्नपूर्णा शंख का उपयोग घर में सुख-शान्ति और श्री समृद्धि के लिए अत्यन्त उपयोगी है। गृहस्थ जीवन बिताने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिएं।
कामधेनु शंख : कामधेनु शंख का उपयोग तर्क शक्ति को और प्रबल करने के लिए किया जाता है। इस शंख की पूजा-अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मोती शंख : इस शंख का उपयोग घर में सुख और शांति के लिए किया जाता है। मोती शंख हृदय रोग नाशक भी है। मोती शंख की स्थापना पूजा घर में सफेद कपड़े पर करें और प्रतिदिन पूजन करें, लाभ मिलेगा।
विष्णु शंख : इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में राहत व उपचार के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है।
पौण्ड्र शंख : पौण्ड्र शंख का उपयोग मनोबल बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम रहता है। इसे विद्यार्थियों को अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।
मणि पुष्पक शंख : मणि पुष्पक शंख की पूजन-अर्चना से यश कीर्ति, मान सम्मान प्राप्त होता है। उच पद की प्राप्ति के लिए भी इस का पूजन उत्तम रहता है।
देवदत्त शंख : इसका उपयोग दुर्भाग्य नाशक माना गया है। इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। इस शंख को शक्ति का प्रतीक माना गया है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
श्रेष्ठ है दक्षिणावर्ती शंख
इस शंख को देव स्वरूप माना गया है। शंख के मध्य में वरूण, पृष्ठ में ब्रह्मा व अग्रभाग में गंगा का निवास है। दक्षिणावर्ती शंख पूजन से मंगल ही मंगल और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ सम्पत्ति भी बढ़ती है। जहां शंखनाद और शंख पूजन होता है वहां लक्ष्मी स्थायी-वास करती हैं।
दक्षिणावर्ती शंख के दो प्रकार होते हैं। नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो वह मादा शंख होता है। दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना यज्ञोपवीत पर करनी चाहिए। शंख का पूजन केसर युक्त चंदन से करना चाहिए।
प्रतिदिन नित्यक्रिया से निवृत्त होकर शंख की धूप-दीप-नैवेद्य-पुष्प से पूजन करें और तुलसी दल चढ़ाएं।
दक्षिणावर्ती शंख की पूजा और फल
प्रथम प्रहर में पूजन करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
द्वितीय प्रहर में पूजन करने से धन सम्पत्ति में वृद्धि होती हैं।
तृतीय प्रहर में पूजन करने से यश व कीर्ति में वृद्धि होती है।
चतुर्थ प्रहर में पूजन करने से सन्तान प्राप्ति होती है।
जिस घर में इस शंख का पूजन होता है, वहां मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस शंख की उत्पत्ति भी माता लक्ष्मी की तरह समुद्र मंथन से हुई है। दूसरा कारण यह है कि यह शंख श्री हरि विष्णु को अति प्रिय है, इस शंख को विधि-विधान से घर में प्रतिष्ठित किया जाए तो घर के वास्तुदोष भी समाप्त होते हैं।
इस शंख को दक्षिणावर्ती इसिलए कहा जाता है क्योंकि सभी शंखों का पेट बार्ईं और खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं ओर खुलता है। जहां यह शंख होता है वहां मंगल ही मंगल होता है।
यदि पेट मे दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं।
यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है। दक्षिणावर्ती शंख से शिवजी का अभिषेक करने से अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होता है। विशेष कार्य में जाने से पूर्व दक्षिणावर्ती शंख के दर्शन करने से वह कार्य सिद्ध होता है।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर, महत्वपूर्ण, उपयोगी व वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की है, जो कि दुर्लभ है। धन्यवाद!💐💐💐

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