मंगलवार, 13 सितंबर 2016

कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न-




जब हनुमान जी के कोप से बचने के लिए शनि देव को बनना पड़ा स्त्री-
गुजरात में भावनगर के सारंगपुर में हनुमान जी का एक अति प्राचीन मंदिर स्तिथ है जो की कष्टभंजन हनुमानजी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है की इस मंदिर में हनुमान जी के पैरों में स्त्री रूप में शनि देव बैठे है।
सभी जानते हैं कि हनुमानजी स्त्रियों के प्रति विशेष आदर और सम्मान का भाव रखते हैं। ऐसे में उनके चरणों में किसी स्त्री का होना आश्यर्च की बात है। लेकिन इसका सम्बन्ध एक पौराणिक कथा से है जिसमें बताया गया है की आखिर क्यों शनिदेव को स्त्री का रूप धारण कर हनुमान जी के चरणों में आना पड़ा। आइए पहले पढ़ते है यह कथा फिर जानेंगे कष्टभंजन हनुमान मंदिर के बारे में।
हमारे शास्त्रों में हनुमान जी और शनि देव से जुड़े अनेकों प्रसंग है जो बताते है की कैसे समय-समय पर हनुमान जी ने शनिदेव को ठीक किया। इनमे से ही एक प्रसंग यह है प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक समय शनिदेव का प्रकोप काफी बढ़ गया था। शनि के कोप से आम जनता भयंकर कष्टों का सामना कर रही थी। ऐसे में लोगों ने हनुमानजी से प्रार्थना की कि वे शनिदेव के कोप को शांत करें। बजरंग बली अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं और उस समय श्रद्धालुओं की प्रार्थना सुनकर वे शनि पर क्रोधित हो गए। जब शनिदेव को यह बात मालूम हुई कि हनुमानजी उन पर क्रोधित हैं और युद्ध करने के लिए उनकी ओर ही आ रहे हैं तो वे बहुत भयभीत हो गए। भयभीत शनिदेव ने हनुमानजी से बचने के लिए स्त्री रूप धारण कर लिया। शनिदेव जानते थे कि हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और वे स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाते हैं। हनुमानजी शनिदेव के सामने पहुंच गए, शनि स्त्री रूप में थे। तब शनि ने हनुमानजी के चरणों में गिरकर क्षमा याचना की और भक्तों पर से शनि का प्रकोप हटा लिया। तभी से हनुमानजी के भक्तों पर शनिदेव की तिरछी नजर का प्रकोप नहीं होता है। शनि दोषों से मुक्ति हेतु कष्टभंजन हनुमानजी के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
कष्टभंजन हनुमान मंदिर सारंगपुर
सारंगपुर में कष्टभंजन हनुमानजी के मंदिर का भवन काफी विशाल है। यह किसी किले के समान दिखाई देता है। मंदिर की सुंदरता और भव्यता देखते ही बनती है। कष्टभंजन हनुमानजी सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं और उन्हें महाराजाधिराज के नाम से भी जाना जाता है। हनुमानजी की प्रतिमा के आसपास वानर सेना दिखाई देती है। यह मंदिर बहुत चमत्कारी है और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यदि कुंडली में शनि दोष हो तो वह भी कष्टभंजन के दर्शन से दूर हो जाता है। इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है।
//शनि देव हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओ में से एक है | यह माना जाता की शनि देव मनुष्य को उसके पाप एवं बुरे कार्य का दंड प्रदान करते है पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा ऐसे परमप्रतापी पुत्र को पाकर भी सूर्य देवता ने उन्हें अपने पुत्र के रूप में नही अपनाया |
शनि का जन्म पुराणो में कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी छाया की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की शनि अमावस्या को सौराष्ट के शिगणॉपुर में हुआ था | माता ने शंकर जी की कठोर तपस्या की तथा तेज गर्मी और घूप के कारण गर्भ में शनि का रंग काला हो गया | एक बार जब सूर्य देव अपनी पत्नी छाया से मिलने गए तब शनि ने उनके तेज के कारण अपनी आँखे बंद कर ली सूर्य ने अपनी द्रिव्य दृष्टि से देखा की उनका पुत्र तो काला है जो उनका नहीं हो सकता |
शनि की पत्नी छाया को सूर्य देव ने अपनाने से इंकार कर दिया उस के बाद कभी स्वीकार नहीं किया तब से शनि अपने पिता सूर्य देव के कट्टर दुश्मन हो गए | तभी से शनि के मन में अपने पिता के प्रति शत्रुता का भाव पैदा हो गया और पिता ने भी शनि के साथ पुत्रवत् प्रेम प्रदर्शित नहीं किया | शनि ने अपार शक्ति के लिए भगवान शंकर की कठोर तपस्या की और उने प्रसन किया |
शिव की भक्ति से बालक शनि को अद्भुत शक्तियाँ की प्राप्ति हुई जब भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो शनि ने कहा सूर्य देव ने मेरी माता का अनादर किया है, उने प्रताड़ित किया है इसलिए आप मुझे सूर्य देव से अधिक शक्तिशाली एव पूजय होने का वरदान दे | तभी भगवान ने उन्हें वरदान दिया की तुम नवग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ सर्वाच्च न्यायधीश एवं ढंडधिकारी रहोगे | साधारण मानव तो क्या देवता,असुर, नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे | इस वरदान को प्राप्त कर शनि देव ने अपने आपको अपने पिता के सामने क्षमतावान बनाने के साथ ही अपनी माँ के सम्मान के भी रक्षा करी |
//कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न-
  
 
निवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं। इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।
* शनिवार के दिन शनि देव की विशेष पूजा होती है। शहर के हर छोटे बड़े शनि मंदिर में सुबह ही आपको शनि भक्त देखने को मिल जाएंगे।
* शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवंती का फूल, तिल, तेल, गु़ड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
* शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।
* शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए।
* इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
* शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
* शनि की शांति के लिए नीलम को तभी पहना जा सकता है।
* शनिश्वर के भक्तों को संध्या काल में शनि मंदिर में जाकर दीप भेंट करना चाहिए और उड़द दाल में खिचड़ी बनाकर शनि महाराज को भोग लगाना चाहिए। शनिदेव का आशीर्वाद लेने के पश्चात आपको प्रसाद स्वरूप खिचड़ी खाना चाहिए।
* सूर्यपुत्र शनिदेव की प्रसन्नता हेतु इस दिन काली चींटियों को गु़ड़ एवं आटा देना चाहिए।
* इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करना चाहिए।
* श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करना अति मंगलकारी माना जाता है।
इस प्रकार भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक शनिवार के दिन शनिदेव का व्रत एवं पूजन करने से शनि का कोप शांत होता है और शनि की दशा के समय उनके भक्तों को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है।

गाय 🐮प्रश्नोतरी



// गाय 🐮प्रश्नोतरी
 * भगवान कृष्ण ने किस ग्रंथ में कहा है धेनुनामसिममैं गायों में कामधेनु हूं?

- श्रीमद् भगवतगीता 👏|
* ‘चाहे मुझे मार डालो पर गाय पर हाथ न उठाओकिस महापुरुष ने कहा था?
- बाल गंगाधर तिलक 👏|
* रामचंद्र बीरने कितने दिनों तक गौहत्या पर रोक लगवाने के लिए अनशन किया?
-- 70 दिन👏 |
* पंजाब में किस शासक के राज्य में गौ हत्या पर मृत्यु दंड दिया जाता था?
-- पंजाब केसरी महाराज रणजीत सिंह |👏
* गाय के घी से हवन पर किस देश में वैज्ञानिक प्रयोग किया गया?
-- रूस |👏
* गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग किस में होता है?
-- खेती के लिए जैविक (केंचुआ) खाद बनाने में 👏|
* मनुष्य को गौ-यज्ञ का फल किस प्रकार होता है?
-- कत्लखाने जा रही गाय को छुड़ाकर उसके पालन-पोषण की व्यवस्था करने पर |👏
* एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर क्या बनता है?
- एक टन आँक्सीजन 👏|
* ईसा मसीहा का क्या कथन था?
-- एक गाय को मरना, एक मनुष्य को मारने के समान है |👏
* प्रसिद् मुस्लिम संत रसखान ने क्या अभिलाषा व्यक्त की थी?
-- यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं |👏
* पं. मदन मोहन मालवीय जी की अंतिम इच्छा क्या थी?
-- भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने |👏
* भगवान शिव का प्रिय श्री सम्पन्न बिल्वपत्रकी उत्पत्ति कहा से हुई है?
-- गाय के गोबर से 👏|
* गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 क्या है?
-- 10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना 👏|
* गाय की रीढ़ में स्थित सुर्यकेतु नाड़ी से क्या होता है?
-- सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होता है 👏|
* देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम कितने जीवाणु होते है?
-- 300 करोड़👏 |
* गाय के दूध में कौन-कौन से खनिज पाए जाते है?
-- कैलिशयम 200 प्रतिशत, फास्फोरस 150 प्रतिशत, लौह 20 प्रतिशत, गंधक 50 प्रतिशत, पोटाशियम 50 प्रतिशत, सोडियम 10 प्रतिशत, पाए जाते है👏👏 |
* ‘गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगौमय है’, यह युक्ति किस पुराण की है?
-- स्कन्द पुराण👏 |
* विश्व की सबसे बड़ी गौशाला का नाम बताइए?
-- पथमेड़ा, राजस्थान 👏|
* गाय के दूध में कौन-कौन से विटामिन पाए जाते है?
-- विटामिन C 2 प्रतिशत, विटामिन A (आई.क्यू) 174 और विटामिन D 5 प्रतिशत 👏|
* यदि हम गायों की रक्षा करेंगे तो गाय हमारी रक्षा करेंगी यह संदेश किस महापरुष का है?
-- पंडित मदन मोहन मालवीय का👏 |
* ‘गौधर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है| इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है| यह विचार किनका था?
-- महर्षि अरविंद का 👏|
* भगवान बालकृष्ण ने गायें चराने का कार्य किस दिन से प्रारम्भ किया था?
-- गोपाष्टमी से👏 |
* श्री राम ने वन गमन से पूर्व किस ब्राह्मण को गायें दान की थी?
-- त्रिजट ब्राह्मण को 👏|
* ‘जो पशु हां तों कहा बसु मेरो, चरों चित नंद की धेनु मंझारनयह अभिलाषा किस मुस्लिम कवि की है?
-- रसखान |👏
* ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटआऊँयह इच्छा किस गुरु ने प्रकट की?
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने 👏|
 
मै ने पोस्ट आपतक पहुंचाई अच्छी लगे तो आप भी गौ भक्ति दिखाईये ---जय गौ माँ👏  👏⛳👏⛳👏⛳

वामन जयन्ती :-



वामन जयन्ती :-
वामन जयंती भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। द्वादशी तिथि के दिन मनाये जाने के कारण ही इसे 'वामन द्वादशी' भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में भगवानश्रीविष्णु के एक रूप भगवान वामन का अवतार हुआ था। इस तिथि पर मध्याह्न के समय भगवान का वामन अवतार हुआ था, उस समय श्रवण नक्षत्र था। भागवत पुराण में ऐसा आया है कि वामन श्रावण मास की द्वादशी पर प्रकट हुए थे, जबकि श्रवण नक्षत्र था, मुहूर्त अभिजित था तथा वह तिथि विजयद्वादशी कही जाती है।
पूजन विधि :-
इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्रीहरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए। भगवान वामन को पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या के समय व्रती को भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
वामन जयंती कथा :-
वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्त्वपूर्ण अवतार माना जाता है। भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है। इसके विषय में श्रीमद्भगवदपुराण में विस्तार से उल्लेख है। हरदोई को हरिद्वेई भी कहा जाता है क्योंकि भगवान ने यहां दो बार अवतार लिया एक बार हिरण्याकश्यप वध करने के लिये नरसिंह भगवान रूप में तथा दूसरी बार भगवान बावन रूप रखकर।
देव-असुर युद्ध :-
वामन अवतार की कथानुसार देव और दैत्यों के युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे थे। पराजित दैत्य मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि इन्द्र के वज्र से मृत हो जाते हैं। तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे दैत्यों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं। राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं। इससे असुरों की शक्ति में वृद्धि हो जाती है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण कर देती है।
विष्णु का वामन अवतार :-
देवताओं के राजा इन्द्र को दैत्यराज बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि बलि सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जायेगा। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं।
महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश का दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र,सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊँ, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पितासे आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम यज्ञ कर रहे होते हैं।
बलि द्वारा भूमिदान
वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहाँ भिक्षा माँगने पहुँच जाते हैं। ब्राह्मण बने विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि माँगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्गादि उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं। अब तीसरा पग रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो जाता है कि वामन के तीसरा पैर रखने के लिए स्थान कहाँ से लाये। ऐसे में राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। आखिरकार बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करते हैं। बलि सहर्ष भवदाज्ञा को शिरोधार्य करता है। बलि के द्वारा वचन पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर माँगने को कहते हैं। इसके बदले में बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन माँग लेता है, श्रीविष्णु अपना वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं।