अश्वगंधा :: सौ शारीरिक समस्या एक ईलाज
=================================
अश्वगंधा
एक महत्वपूर्ण वनस्पति है जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषकर शुष्क प्रदेशों में असगंध के जंगली या कृषिजन्य पौधे 5,500 फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके जंगली पौधे की
अपेक्षा कृषिजन्य पौधे गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम होते हैं, परंतु तेल आदि के लिए जगंली पौधे ही उपयोगी होते हैं। यह देश भेद से कई प्रकार
की कही गई है, परंतु असली असगंध के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र
जैसी गंध आती है जो इसकी ताजी जड़ में अपेक्षाकृत अधिक होती है। असगंध (अश्वगंधा)
का झाड़ीदार पौधा 60 से 90 सेमी तक लंबा होता है। इसकी जड़ ही औषधि रूप में प्रयोग की जाती है। इसकी जड़
अन्दर से सफेद, कड़ी, मोटी-पतली, और 10 से 15 सेमी के लगभग लंबी होती है। इसकी जड़ को सुखाकर उपयोग में लाया जाता है। इसके
पौधे पर 5-5 फूलों के गुच्छे पीले या लाल रंग के होते हैं तथा बीज
पीले रंग के छोटे, चिपटे
और चिकने होते हैं।
अश्वगंधा एक औषधीय शाकीय पौधा है जिसका विथानिया
सोम्नीफेरा है | जड़ों का उपयोग गठिया, अपच, त्वचा रोग, ब्रोकाइटिस, अल्सर, और यौन दुर्बलता के इलाज में किया जाता है। सर्पदंश में भी जड़ो का उपयोग किया
जाता है। बुखार के लिए पत्तियों का अर्क दिया जाता है। ववासीर के उपचार के लिए
पत्तियो का काढ़ा आंतरिक और बाहरी रूप से उपयोग किया जाता है। पत्तियों का उपयोग
आँख, फोड़े, हाथ और पैर की सूजन के लिए किया जाता है। छाल का काढ़ा अस्थमा रोग में दिया
जाता है | शरीर के जूँ मारने के लिए एक कीटनाशक के रूप में उपयोगी होता है। स्त्रियों के
बाँझपन को दूर करने के लिए इसके काढ़े को दूध के साथ दिया जाता है। संपूर्ण पौधा
ही बेहद उपयोगी होता है |
यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ
के जंगलो में, पंजाब, हिमाचल
प्रदेश, पाश्चिमी उत्तरप्रदेश, कर्नाटक
और हिमालय में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में मनासा, नीमच
और मंदसौर की जवाद तहसील में पाया जाता है। अश्वगंधा भारत की एक महत्तवपूर्ण खेती
की जानी वाली औषधी है। प्राचीन आयुर्वेदिक साहित्य मे इसका एक महत्तवपूर्ण दवा के
रुप में उल्लेख किया गया है। यह एक सीधा, रोयेंदार
और सदाबहार पौधा है। पौधे के सभी भाग श्वेताभ होते है। पत्तियाँ अण्डाकार, पूर्ण और पतली होती है। फूल उभयलिंगी और हरे या अंधकारमय पीले रंग के होते है।
फूल जुलाई से सितम्बर माह में आते हैं। फल बेरी के रूप में, 7 मिमी के, लाल, गोलाकार और चिकने होते है। फल पकने पर नारंगी लाल - रंग के हो जाते है। फल
दिसंबर माह में आते है। इसके बी़ज पीले रंग के होते है। इससे अश्वगंधा चूर्ण, अश्वगंधा एक्सट्रेक ,अश्वगंधा
की गोलियाँ बनाई जाती है |
विभिन्न भाषाओं नाम : संस्कृत अश्वगंधा, वराहकर्णी ,,हिंदी असंगध, अश्वगंधा
,,गुजराती आसंध, घोड़ा
आहन, घोड़ा आकुन ,,मराठी आसंध, डोरगुंज
,,बंगाली अश्वगंधा ,,तेलगू
पनेरू ,,अंग्रेजी वीनटर चेरी (Winter Cherry)
रासायनिक संघटन : असगंध की जड़ में एक उड़नशील तेल तथा
बिथेनिओल नामक तत्व पाया जाता है। इसके अलावा सोम्मीफेरिन नामक क्रिस्टेलाइन
एल्केलायड एवं फाइटोस्टेरोल आदि तत्व भी पाये जाते हैं।
गुण-धर्म : यह कफ वातनाशक, बलकारक, रसायन, बाजीकारक, नाड़ी-शक्तिवर्द्धक तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला होता है।
हानिकारक : गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का
अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : गोंद, कतीरा एवं घी इसके गुणों को सुरक्षित रखते हुए, दोषों
को कम करता है।
विभिन्न रोगों का अश्वगंधा से उपचार :
1 -गंडमाला
:-असंगध के नये कोमल पत्तों को समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर तथा पीसकर झाड़ी
के बेर जितनी गोलियां बना लें। इसे सुबह ही एक गोली बासी पानी के साथ निगल लें और
असगंधा के पत्तों को पीसकर गंडमाला पर लेप करें।.
2- हृदय
शूल :-*वात के कारण उत्पन्न हृदय रोग में असगंध का चूर्ण दो ग्राम गर्म पानी के
साथ लेने से लाभ होता है। *असगंध चूर्ण में बहेड़े का चूर्ण बराबर मात्रा में
मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा गुड़ के साथ लेने से हृदय सम्बंधी वात
पीड़ा दूर होती है।"
3 -क्षयरोग
(टी.बी.) : -*2 ग्राम असंगध के चूर्ण को असगंध के ही 20 मिलीलीटर काढ़े के साथ सेवन करने से क्षय रोग
में लाभ होता है। *2 ग्राम
असगंध की जड़ के चूर्ण में 1 ग्राम
बड़ी पीपल का चूर्ण, 5 ग्राम
घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से क्षय रोग (टी.बी.) मिटता है।"
4 -खांसी
: -*असगंध (अश्वगंधा) की 10 ग्राम
जड़ को कूट लें, इसमें 10 ग्राम
मिश्री मिलाकर 400 मिलीलीटर पानी में पकाएं, जब 8वां हिस्सा रह जाये तो इसे थोड़ा-थोड़ा पिलाने से कुकुर खांसी या वात जन्य खांसी
पर विशेष लाभ होता है।
*असगंध
के पत्तों का काढ़ा 40 मिलीलीटर, बहेडे़ का चूर्ण 20 ग्राम, कत्था का चूर्ण 10 ग्राम, कालीमिर्च 50 ग्राम,
लगभग 3 ग्राम
सेंधानमक को मिलाकर लगभग आधा ग्राम की गोलियां बना लें। इन गोलियों को चूसने से
सभी प्रकार की खांसी दूर होती है। टी.बी. खांसी में भी यह लाभदायक है।"
5 -गर्भधारण
: -*अश्वगंधा का चूर्ण 20 ग्राम, पानी 1 लीटर तथा गाय का दूध 250 मिलीलीटर
तीनों को हल्की आंच पर पकाकार जब दूध मात्र शेष रह जाये तब इसमें 6 ग्राम मिश्री और 6 ग्राम
गाय का घी मिलाकर मासिक-धर्म की शुद्धिस्नान के 3 दिन
बाद 3 दिन तक सेवन करने से स्त्री अवश्यगर्भ धारण करती है। *अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध के साथ
या ताजे पानी से 4-6 ग्राम
की मात्रा में 1 महीने तक निरंतर सेवन करने से स्त्री गर्भधारण अवश्य
करती है।
*अश्वगंधा
की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से वात रोग दूर होता
है तथा स्त्री गर्भधारण करती है।"
6 -गर्भपात
: -बार-बार गर्भपात होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ इन दोनों का 10-10 मिलीलीटर रस पहले 5
महीने तक सेवन करने से अकाल में गर्भपात नहीं होगा और
गर्भपात के समय सेवन करने से गर्भ रुक जाता है।
7 -रक्तप्रदर
एवं श्वेतप्रदर :-अश्वगंधा के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से
लाभ होता है।
8 -कृमि
रोग (पेट के कीड़े) : -इसके चूर्ण में बराबर मात्रा में गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद
के साथ 5-10 ग्राम नियमित सेवन करने से लाभ होता है।
9 -संधिवात
(जोड़ों का दर्द) में : -*अश्वगंधा के पंचांग (जड़, पत्ती, तना, फल और फूल) को कूटकर, छानकर 25 से 50 ग्राम तक सेवन करने से जोड़ों का दर्द (गठियावात) दूर होता है। गठिया में
अश्वगंधा के 30 ग्राम ताजा पत्ते, 250 मिलीलीटर
पानी में उबालकर जब पानी आधा रह जाये तो छानकर पी लें। 1 सप्ताह पीने से ही गठिया में जकड़ा और तकलीफ से रोता रोगी बिल्कुल अच्छा हो
जाता है तथा इसका लेप भी बहुत लाभदायक है। *अश्वगंधा के चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ खाने से गठिया के रोगी को आराम हो
जाता है।
*अश्वगंधा
के तीन ग्राम चूर्ण को तीन ग्राम घी में मिलाकर, एक
ग्राम शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है। अश्वगंधा की 15 ग्राम कोंपले या कोमल पत्ते लेकर 200 मिलीलीटर
पानी में उबालें जब पत्ते गल जाये या नरम हो जायें तो छानकर गर्म-गर्म तीन-चार दिन
पीयें, इससे कफ जन्य खांसी भी दूर होती है।"
10 -कमर
दर्द : -*अश्वगंधा के 2-5 ग्राम
चूर्ण को गाय के घी या शक्कर के साथ चाटने से कमरदर्द और नींद में लाभ होता है।
*असगंध और सोंठ बराबर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच
चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करें। इससे कमर दर्द से आराम मिलता है। *असंगध और
सफेद मूसली को पीसकर बराबर मात्रा में बनाया गया चूर्ण 1 चम्मच भर, रोजाना दूध के साथ सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।
*1-1 छोटे
चम्मच असगंध का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह- शाम खाने और ऊपर से एक गिलास दूध पीने
से शरीर की कमजोरी दूर होती है।"
11 -नपुंसकता
:-*अश्वगंधा का कपड़े से छना हुआ बारीक चूर्ण और चीनी बराबर मिलाकर रखें, इसको 1 चम्मच गाय के ताजे दूध के साथ सुबह भोजन से 3 घंटे
पूर्व सेवन करें। इस चूर्ण को चुटकी-चुटकी भर खाते हैं और ऊपर से दूध पीते रहें।
रात के समय इसके बारीक चूर्ण को चमेली के तेल में अच्छी तरह घोटकर लगाने से
इन्द्रिय की शिथिलता दूर होकर वह कठोर और दृढ़ हो जाती हैं। *अश्वगंधा, दालचीनी और कडुवा कूठ बराबर मात्रा में कूटकर छान लें और गाय के मक्खन में
मिलाकर 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सुपारी छोड़करक शेष लिंग
पर मलें, इसको मलने के पूर्व और बाद में लिंग को गर्म पानी से धो लें।"
12- कमजोरी
:-*असगंध एक वर्ष तक यथाविधि सेवन करने से शरीर रोग रहित हो जाता है। केवल
सर्दीयों में ही इसके सेवन से दुर्बल व्यक्ति भी बलवान होता है। वृद्धावस्था दूर
होकर नवयौवन प्राप्त होता है।
*असंगध
चूर्ण, तिल व घी 10-10 ग्राम लेकर और तीन ग्राम शहद मिलाकर नित्य सर्दी में
सेवन करने से कमजोर शरीर वाला बालक मोटा हो जाता है।
*अश्वगंधा
का चूर्ण 6 ग्राम, इसमें बराबर की मिश्री और बराबर शहद मिलाकर इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलायें, इस
मिश्रण को सुबह शाम शीतकाल में चार महीने तक सेवन करने से बूढ़ा व्यक्ति भी युवक की
तरह प्रसन्न रहता है।
*अश्वगंधा
चूर्ण 20 ग्राम, तिल इससे दुगने, और उड़द
आठ गुने अर्थात 140 ग्राम, इन
तीनों को महीन पीसकर इसके बड़े बनाकर ताजे-ताजे एक ग्राम तक खायें।
*अश्वगंधा
चूर्ण और चिरायता बराबर-बराबर लेकर खरल (कूटकर) कर रखें। इस चूर्ण को 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह ग्राम शाम दूध के साथ
खायें।
*एक
ग्राम अश्वगंधा चूर्ण में लगभग 1 ग्राम
का चौथा भागमिश्री डालकर उबालें हुए दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट होता है, बल बढ़ता है।
13 -खून की
खराबी : -4 ग्राम चोपचीनी और अश्वगंधा का बारीक पिसा चूर्ण बराबर मात्रा में लें। इसे शहद
के साथ नियमित सुबह-शाम चाटने से रक्तविकार मिट जाता है।
14 -ज्वर :
-इसका चूर्ण पांच ग्राम, गिलोय
की छाल का चूर्ण चार ग्राम, दोनों
को मिलाकर प्रतिदिन शाम को गर्म पानी से खाने से जीर्णवात ज्वर दूर हो जाता है।.
15 -सभी
प्रकार के रोगों में : -लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग गिलोय का चूर्ण को 5 ग्राम
अश्वगंधा के चूर्ण के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी प्रकार के रोग दूर हो
जाते हैं।
16 -बांझपन
दूर करना : -*असगंध, नागकेसर
और गोरोचन इन तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस-छान लेते हैं। इसे शीतल जल के
साथ सेवन करें तो गर्भ ठहर जाता है।
*असगंध
तथा नागौरी को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूटकर कपड़छन कर लेते हैं।
जब मासिक-धर्म के बाद स्त्री स्नान करके शुद्ध हो जाए तो 10 ग्राम की मात्रा में इसका सेवन करें। उसके बाद पुरुष के साथ रमण (मैथुन) करें
तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी। "
17 -गर्भधारण
:-*असगंध के काढे़ में दूध और घी मिलाकर 7 दिनों
तक पिलाने से स्त्री को निश्चित रूप से गर्भधारण होता है।
*असगंध
का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग 4 दिन पहले से सेवन करना चाहिए। इससे गर्भ ठहरता है।
*असगंध 100 ग्राम दरदरा कूटकर इसकी 20 ग्राम मात्रा को 200 मिलीलीटर
पानी में रात को भिगोकर रख देते
हैं। सुबह इसे उबालते हैं। एक चौथाई रह जाने पर इसे
छानकर 200 मिलीलीटर गुनगुने मीठे दूध में एक चम्मच घी मिलाकर
माहवारी के पहले दिन से 5 दिनों
तक लगातार प्रयोग करना चाहिए।"
18 -दस्त
:-असगंध, दालचीनी, नागरमोथा, बाराही
फल, धाय के फूल और कुड़ा (कोरैया) की छाल को निकालकर
काढ़ा बनाकर रख लें, फिर
इसी बने काढ़े को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से बुखार के दौरान आने वाले दस्त बंद हो जाते हैं
और आराम मिलता है।
19 -मासिक-धर्म
सम्बंधी विकार :-असगंध 35 ग्राम की
मात्रा में कूटकर छान लेते हैं। इसमें 35 ग्राम
की मात्रा में चीनी मिला देते हैं। इसकी 10 ग्राम
मात्रा को पानी से खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले सेवन
करना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे
मासिक धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
20 -प्रदर
:-*असगंध और शतावर का बराबर मात्रा का चूर्ण 3 ग्राम
ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है। *असगंध का चूर्ण सुबह-शाम
दूध के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वेत प्रदर मिट जाता है। 25-25 ग्राम की मात्रा में असगंध, बिधारा, लोध्र पठानी, को
कूट-पीस छानकर 5-5 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर
में आराम मिलता है। *5-10 ग्राम
असगंध, नागौरी चूर्ण सुबह-शाम घी के साथ सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।"
21 -अल्सर
:-4 ग्राम असगंध को गौमूत्र (गाय के पेशाब) में पीसकर सेवन करना चाहिए।
22- हड्डी
कमजोर होना : -असगंध नागौरी का चूर्ण 1 से 3 ग्राम शहद एवं मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम खाने से हड्डी की विकृति आदि
दूर होकर शरीर पुष्ट और सबल हो जाता है।
23- रक्तप्रदर
:-अश्वगंधा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम
की मात्रा में सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता
है।
24 -स्तनों
के आकार में वृद्धि : -*असगंध नागौरी और शतावरी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी
तरह से पीसकर चूर्ण बनायें, फिर
इसी चूर्ण को देशी घी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी चूर्ण को 10 ग्राम
की मात्रा में मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों के आकार में बढ़ोत्तरी
होती है।
*असंगध
नागौरी, गजपीपल और बच आदि को बराबर लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर मक्खन के साथ मिलाकर स्तनों पर लगायें। इससे स्तनों का उभार होता
है।"
25 -मोटापे
के रोग में :-असगंध 50 ग्राम, मूसली 50 ग्राम, काली
मूसली 50 की मात्रा में कूटकर छानकर रख लें, इसे 10 ग्राम की मात्रा में सुबह दूध के साथ लेने से मोटापा दूर होता है।
26 -स्तनों
को आकर्षक होना :-असगंध और शतावरी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर लगभग 2-2 ग्राम
की मात्रा में शहद के खाकर ऊपर से दूध में मिश्री को
मिलाकर पीने से स्तन आकर्षक हो जाते हैं।
27- वात
रोग : -*असगंध के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को खाने से लाभ प्राप्त होता है।
*असगंध
और विधारा 500-500 ग्राम कूट पीसकर रख लें।10 ग्राम दवा सुबह गाय के दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं।
*असगंध
और मेथी की 100-100 ग्राम मात्रा का बारीक चूर्ण बनाकर, आपस में गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम
के लड्डू बना लें। 1-1 लड्डू
सुबह-शाम खाकर ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग वात रोगों में अच्छा आराम दिलाता है।
जिन्हें डायबिटीज हो, उन्हें
गुड़ नहीं मिलाना चाहिए, उन्हें
सिर्फ अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।".
28 -वीर्य
रोग में : -*असगंध नागौरी, विधारा, सतावरी 50-50 ग्राम कूट-पीसकर छान लें, फिर इसमें 150 ग्राम चीनी मिला दें। 10-10 ग्राम
दूध से सुबह-शाम लें। *नागौरी असगंध, गोखरू, शतावर तथा मिश्री मिलाकर खायें।
*असगंध, विधारा 25-25 ग्राम को मिलाकर बारीक पीस लें। इसमें 50 ग्राम चीनी मिलाकर 10 ग्राम
दवा सोते समय हल्के गर्म दूध से लें। इससे बल वीर्य बढ़ता है। *300 ग्राम असगंध को बारीक पीस लें। इसकी 20 ग्राम मात्रा को 250 मिलीलीटर
दूध में मिलाकर उबालें, जब यह
गाढ़ा हो जाये तो इसमें चीनी मिलाकर पीना चाहिए। "
29 -अंगुलियों
का कांपना :-3 से 6 ग्राम
असगंध नागौरी को गाय के घी और उसके चार गुना दूध में उबालकर मिश्री मिलाकर
प्रतिदिन पीने से अंगुलियों का कांपना दूर हो जाता है। इससे रोगी को काफी लाभ
मिलता है।
30 -योनि
रोग :-असगंध को दूध में अच्छी तरह पका लें, फिर
ऊपर से देशी घी को डालकर एक दिन सुबह और शाम माहवारी के बाद स्नान हुई महिला को
पिलाने से योनि के विकार हो नष्ट जाते हैं और गर्भधारण के योग्य हो जाता है।
31 -दिल की
धड़कन : -असगंध और बहेड़ा दोनों को कूट- पीसकर चूर्ण बना लें। फिर 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर हल्के गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल
की तेज धड़कन और निर्बलता नष्ट होती है।
32- गठिया
रोग :-*असगंध, सुरंजन मीठी, असपन्द
और खुलंजन 30-30 ग्राम को कूट-छानकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 5-5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम गर्म पानी से
लें। इससे गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*50 ग्राम
असगंध और 25 ग्राम सोंठ को कूट-छानकर इसमें 75 ग्राम
चीनी को मिला लें। 4-4 ग्राम
मिश्रण पानी से सुबह-शाम लेने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है।
*3 ग्राम
असगंध का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 3 ग्राम
घी मिलाकर रोजाना सुबह-शाम लेने से गठिया के रोग में आराम मिलता है।"
33 -हाई
ब्लडप्रेशर :-अश्वगंधा चूर्ण 3 ग्राम, सूरजमुखी बीज का चूर्ण 2 ग्राम, मिश्री 5 ग्राम और गिलोय का बारीक चूर्ण (सत्व) 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ दिन में 2-3 बार
सेवन करने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है।
34 -हृदय
की दुर्बलता :-असंगध 3-3 ग्राम
सुबह-शाम गर्म दूध से लें। इससे दिल दिमाग की कमजोरी ठीक हो जाती है।
35 -हाथ-पैरों
की ऐंठन :-सुरंजन मीठी, असगंध
नागौरी 50-50 ग्राम, 25 ग्राम
सोंठ और 120 ग्राम मिश्री को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण
4 से 6 ग्राम प्रतिदिन सुबह- शाम ताजे पानी के साथ लेने से पैरों के जोड़ व हाथ- पैरों
का दर्द खत्म हो जाता है।
36 -क्रोध
: -लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को मिश्री और घी में मिलाकर हल्के गर्म दूध के
साथ सुबह- शाम को खाने से स्नायुतंत्र अपना कार्य ठीक तरह से करता है, जिससे क्रोध नष्ट हो जाता है।
37 -सदमा
:-लगभग 3-6 ग्राम असगंध नागौरी के चूर्ण को सुबह-शाम को रोजाना
घी और चीनी मिले दूध के साथ खाने से स्नायुविक ऊर्जा प्राप्त होने के कारण बार-बार
आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं।
38 -खून का
बहना :-अश्वगंधा के चूर्ण और चीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर खाने से खून निकलना
बंद हो जाता है।
39 -लिंग
वृद्धि :-*लिंग को बढ़ाने के लिए लोध्र, केशर, असगंधा, पीपल, शालपर्णी
को तेल में पकाकर लिंग पर
मालिश करने से लिंग में वृद्धि हो जाती है।
*कूटकटेरी, असगंध, बच, शतावरी आदि को तिल में अच्छी तरह से पकायें। सब औषधियों के जल जाने पर ही उसे
आग से उतारे और लिंग पर मालिश करें। इससे लिंग का छोटापन दूर हो जाता है। "
40 -थकावट
होना :-*लगभग 3 से 6 ग्राम
असगंध नागौरी के चूर्ण को मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम लेने से शरीर
में ताजगी और जोश आ जाता है।
*असगंध
नागौरी और क्षीर विदारी की जड़ को बराबर भाग में लेकर, हल्के गर्म दूध में 3 से 6 ग्राम मिश्री और
घी मिलाकर एक साथ सुबह और शाम को लेने से शरीर की
मानसिक और शारीरिक थकावट दूर हो जाती है।"
41 -शरीर
को शक्तिशाली बनाना :-*असगंध के चूर्ण को दूध में मिलाकर पीने से शरीर शक्तिशाली
होता है और वीर्य में वृद्धि होती है।
*बराबर
मात्रा में असगंध और विधारा को पीसकर इसका चूर्ण बना लें। इसके चूर्ण को एक शीशी
में भरकर रख लें। इस चूर्ण को सुबह और शाम को दूध के साथ लेने से मनुष्य के शरीर
की संभोग करने की क्षमता बढ़ती है।
*असगंध
के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ चाटने से शरीर
में ताकत बढ़ती है।
*लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में नागौरी असगंध, सफेद मूसली और स्याह मूली को लेकर इसका चूर्ण बना लें। रोजाना लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में इस चूर्ण को 500 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह और शाम को खाने से मनुष्य
के शरीर में जबरदस्त शक्ति आ जाती है।
*बराबर
मात्रा में असगंध या अश्वगंधा, सौंठ, मिश्री और विधारा को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद एक-एक चम्मच की
मात्रा में सुबह और शाम को दूध के साथ इस चूर्ण का सेवन करने से शरीर की कमजोरी
दूर हो जाती है,
सर्दी कम लगती है और शरीर में वीर्य बल बढ़ता
है।"
42 -आंखों
की रोशनी बढ़ाने के लिए : -अश्वगंधा का चूर्ण 2 ग्राम, धात्रि फल चूर्ण 2 ग्राम
तथा 1 ग्राम मुलेठी का चूर्ण मिलाकर 1 चम्मच
सुबह और शाम पानी के साथ सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।