सोमवार, 26 मई 2014

*****श्री राम स्तुति*****



श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।
छंद :
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
।।सोरठा।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

*श्री राम वन्दना*




भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी, मुनि मनहारी अद्भुत रूप बिचारी
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुज चारी
भूषन वनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहित बिधि करूं अनंता
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयौ प्रकट श्रीकंता
ब्रह्मांड ‍निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहे
मम उद सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहे
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहे
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा
कीजे सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख पराम अनूपा
सुन बचन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा
यह चरित जे गावहि, हरिपद पावहि, तेहि न परहिं भवकूपा।।
॥इति श्रीरामावतार स्तोत्र संपूर्णम्‌॥