शनिवार, 21 दिसंबर 2013

|| श्री गंगा चालीसा ||

|| श्री गंगा चालीसा ||


दोहा
 जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
 जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥

जय जग जननी हरण अघखानी। आनंद करनी गंग महारानी॥
जय भागीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल दलिनी विख्याता॥
जब जग जननी चल्यो हहराई। शम्भु जटा महं रह्यो समाई॥
वर्ष पर्यन्त गंग महारानी। रहीं शम्भु के जटा भुलानी॥
मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो। तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भई त्रय धारा। मृत्युलोक, नभ, अरु पातारा॥
गई पताल प्रभावति नामा। मंदाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्युलोक जाह्नवी सुहावनी। कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥
धनि मइया तब महिमा भारी। धर्म धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी। धनि सुरसरितसकल भयनासिनी॥
पान करत निर्मल गंगा जल। पावत मन इच्छित अनन्त फल॥
पूरब जन्म पुण्य जब जागत। तबहिं ध्यान गंगा महं लागत॥
जइ पगु सुरसरि हेतु उठावहि। तइ जगि अश्वमेध फल पावहि॥
महापतित जिन काहू न तारे। तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजन हू से जो ध्यावहिं। निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै। विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥
जिमि धन मूल धर्म अरु दाना। धर्म मूल गंगाजल पाना॥
तव गुणगुणन करत दुःख भाजत। गृहगृह संपति सुमति विराजत॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत। दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
बुद्धिहीन विद्या बल पावै। रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं। भूखे नंगे कबहुं न रहहीं॥
निकसत ही मुख गंगा माई। श्रवण दाबि यम चलहिं पराई॥
महा अघिन अधमन कहं तारे। भये नरक के बन्द किवारे॥
जो नर जपै गंग शत नामा। सकल सिद्ध पूरण ह्वै कामा॥
सब सुख भोग परम पद पावहिं। आवागमन रहित ह्वै जावहिं॥
धनी मइया सुरसरि सुख दैनी। धनी-धनी तीरथ राज त्रवेणी॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा। सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा। मिलै भक्ति अविरल वागीसा॥
दोहा नित नव सुख संपति लहैं धरैं गंग का ध्यान।
अन्त समय सुरपुर बसैं सादर बैठि विमान॥
सम्वत भुज नभदिशि राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा किया हरि भक्तन हित नैत्र॥

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