गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

श्राद्धमें पितरोंकी तृप्ति



दूसरे की भूमिपर श्राद्ध
नहीं करना चाहिये। जंगल, पर्वत,
पुण्यतीर्थ और देवमन्दिर ये
दूसरेकी भुमिमें नहीं आते; क्योंकि इनपर
किसीका स्वामित्व नहीं होता ।
- कूर्मपुराण
श्राद्धमें पितरोंकी तृप्ति ब्राह्मणोंके
द्वारा ही होती है।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धकालमें आये हुए अतिथिका अवश्य सत्कार करे। उस समय
अतिथिका सत्कार न करनेसे वह श्राद्ध कर्मके सम्पूर्ण
फलको नष्ट कर देता है।
- वराहपुराण
जहाँ रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्धके
अन्नपर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न प्रेत
ही ग्रहण करते हैं।
-स्कन्दपुराण
श्राद्धमें पहले अग्निको ही भाग अर्पित
किया जाता है। अग्निमें हवन करनेके बाद जो पितरोंके निमित्त
पिण्डदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस दूषित
नहीं करते।
- महाभारत, अनु. ९२।११-१२
जो अज्ञानी मनुष्य अपने घर श्राद्ध करके फिर
दुसरे घर भोजन करता है, वह पाप
का भागी होता है और उसे श्राद्धका फल
नहीं मिलता।
- स्कन्दपुराण
एक हाथसे लाया गया जो अन्न (अन्नपात्र) ब्राह्मणोंके आगे
परोसा जाता है, उस अन्नको राक्षस छीन लेते हैं।
- मनुस्मृति ३।२२५
वस्त्रके बिना कोई क्रिया, यज्ञ, वेदाध्ययन और
तपस्या नहीं होती । अतः श्राद्धकालमें
वस्त्रका दान विशेषरुपसे करना चाहिये।
-ब्रह्मपुराण
श्राद्ध और हवनके समय तो एक हाथसे पिण्ड एवं आहुति दे,
पर तर्पणमें दोनों हाथोंसे जल देना चाहिये।
- पद्मपुराण,नारदपुराण,मत्स्यपुराण,ब्रह्मपुराण,लघुयमस्मृति
श्राद्धके पिण्डोंको गौ, ब्राह्मण या बकरीको खिला दे
अथवा अग्नि या पानीमें छोड दे ।
- मनुस्मृति ३।२६०, महाभारत,अनु. १४५
जो सफेद तिलोंसे पितरोंका तर्पण करता है, उसका किया हुआ
तर्पण व्यर्थ होता है ।
- पद्मपुराण
रात्रिमें श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे
राक्षसी कहा गया है। दोनों सन्ध्याओंमें
तथा पूर्वाह्णकालमें भी श्राद्ध
नहीं करना चाहिये ।
- मनु.

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