पंचांग
-- युधिष्ठिर संवत् ५१५३, युगाब्द्ध- ५११८ , शक संवत १९३८ , विक्रम संवत
२०७३ , मासोत्तम चैत्र मासे शुक्ल पक्षे ०१ सूर्य उत्तरायण, उत्तरगोल,बसंत
ऋतु, सूर्योदया तिथि प्रतिपदा, सूर्योदया नक्षत्रे अश्विनी, सूर्योदय योगे
वैघृति, सूर्योदया करणे बव, शुक्रवासरे, मेष सोमे , सुर्यौदया ०६:०६:५६
(प्रातः 06:06:56 दिल्ली में) अर्थात आज अँग्रेजी दिनांक 08-04-2016 है |
आज- नववर्ष २०७३ का आरम्भ, चैत्र मास का प्रथम नवरात्रा, आर्य समाज का स्थापना दिवस, गुरु अंगददेव जी का जन्मदिवस, डॉ. हेडगेवार जी का जन्मदिवस तथा महात्मा बुद्ध बोधिसत्व प्राप्ति दिवस है |
राहू काल - १०:३० ( प्रातः10:30 ) से १२:०० ( मध्यांत के 12:00 ) तक है |
दिशाशूल - पश्चिम और *नैऋत्य दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है। इस दिन पश्चििम दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव- जौ खाकर घर से बाहर निकलें। इससे पहले पांच कदम पीछे चलें।
इति शुभम --( ज्योतिष विशेषज्ञ ) --
इसी प्रकार ह्रदय केंद्र का देवता विष्णु जी है पर मूलाधार का कामदेव प्रबल हो जाए , तो विष्णु जी की शक्ति क्षीण जाती है । यदि विष्णु प्रबल हो जाए , तो काम देव की शक्ति जलने लगती है और शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है । जिससे अनेक समस्याएं पैदा होती है। मुसीबत यह है कि अन्धास्थावादी विचाराधारा इन शक्तियों को इनकी मूर्तियों के अनुरूप किसी लोक के अतिमानव मानती है और इसी अज्ञानतापूर्ण विचारधारा को प्रसारित करती है क्योंकि इन्ही से धर्म गुरुओं की रोजी रोटी चलती है। पर कोई भी प्राचीन शास्त्र इसका समर्थन नहीं करता। ये पॉवर है जैसे की बिजली। नियंत्रित रहे तो अनेक भोगों की उपलब्धी कराती है-
आज- नववर्ष २०७३ का आरम्भ, चैत्र मास का प्रथम नवरात्रा, आर्य समाज का स्थापना दिवस, गुरु अंगददेव जी का जन्मदिवस, डॉ. हेडगेवार जी का जन्मदिवस तथा महात्मा बुद्ध बोधिसत्व प्राप्ति दिवस है |
राहू काल - १०:३० ( प्रातः10:30 ) से १२:०० ( मध्यांत के 12:00 ) तक है |
दिशाशूल - पश्चिम और *नैऋत्य दिशा की यात्रा वर्जित मानी गई है। इस दिन पश्चििम दिशा में दिशा शूल रहता है।
बचाव- जौ खाकर घर से बाहर निकलें। इससे पहले पांच कदम पीछे चलें।
इति शुभम --( ज्योतिष विशेषज्ञ ) --
किन देवी-देवताओं में टकराव होता है
ज्योतिष के ग्रहों में मित्रता एवं शत्रुता का एक चार्ट है . यह चार्ट धर्मालय के ज्योतिष प्रभाग पर उपलब्ध है । प्रत्येक ग्रह का एक देवता होता है । वस्तुतः यह शरीर के चक्रों से सम्बन्धित विद्या है , ज्योतिष के ग्रह जो होरा में प्रयोग किये जाते है शरीर के ही चक्र होते है । इनपर सौरमंडल के ग्रहों का परिवर्तन प्रभाव डालता है और इसी की गणना ज्योतिष की विद्या है । हमारे देवी देवता भी इन्ही चक्रों से सम्बन्धित है । ये सूक्ष्म शक्तिरूपा होते है और इनका स्वरुप ऊर्जात्मक होता है । हमारे जीवन के लिए सभी की आवश्यकता होती है . इसलिए इन्हें माता पिता कहा जाता है। परन्तु ये शक्ति है और इनका संतुलन आपस में सही रहता है तभी जीवन की स्थिति सही रहती है । जैसे लक्ष्मी और सरस्वती एक मिट्टी है और दूसरा पानी एक धन है , दूसरा भावुकता। इन दोनों का समिश्रण सही हो , तो जीवन में फूल खिलते है । भावुकता बढ़ जाए , तो धन उसमें घुलकर बह जाएगा । मिट्टी बढ़ जाए तो वह सुखकर कठोर हो जाएगी और उसमें कोई फसल नहीं उपजेगी।इसी प्रकार ह्रदय केंद्र का देवता विष्णु जी है पर मूलाधार का कामदेव प्रबल हो जाए , तो विष्णु जी की शक्ति क्षीण जाती है । यदि विष्णु प्रबल हो जाए , तो काम देव की शक्ति जलने लगती है और शरीर में गर्मी उत्पन्न हो जाती है । जिससे अनेक समस्याएं पैदा होती है। मुसीबत यह है कि अन्धास्थावादी विचाराधारा इन शक्तियों को इनकी मूर्तियों के अनुरूप किसी लोक के अतिमानव मानती है और इसी अज्ञानतापूर्ण विचारधारा को प्रसारित करती है क्योंकि इन्ही से धर्म गुरुओं की रोजी रोटी चलती है। पर कोई भी प्राचीन शास्त्र इसका समर्थन नहीं करता। ये पॉवर है जैसे की बिजली। नियंत्रित रहे तो अनेक भोगों की उपलब्धी कराती है-
रात्रि का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य क्या है ???……. नवरात्र शब्द से
नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां) का बोध होता है। इस समय शक्ति के नव रूपों
की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत के
प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है,
इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही
मनाने की परंपरा है। यदि रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों
को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता। नवरात्र के दिन, नवदिन नहीं कहे जाते हैं । भारतीय मनीषियों ने
वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है। विक्रम संवत के पहले दिन
अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम तिथि) से नौ दिन अर्थात
नवमी तक। और इसी प्रकार ठीक छह मास बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा
से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक। परंतु सिद्धि और साधना की
दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन
नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक
प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि कर विशेष
सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं । सामान्य भक्त ही नहीं बड़े-बड़े धर्मधुरंधर पंडित और साधु- महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागकर साधना करना नहीं चाहते हैं । न तो कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ओर ना ही विधिवत कर्म ही करना चाहता है । अपने आप को आस्तिक दिखाने का दिखावा (एक प्रकार का मनोरंजन के जैसे) करते हैं बस । बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं , उनको भी कुछ लोग तान्त्रिक या अन्य निम्नतर की संज्ञा देकर अपमानित करने की नीयत के धनी बैठे हैं । भारतीय मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया है । रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं । आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है । इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता – जागता उदाहरण है । कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है । इसीलिए हमारे ऋषि – मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है । रात्री के समय मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर – दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है । यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है । जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ साधना करते हुए अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य ही होती है ।
नवरात्र या नवरात्रि ?
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं । नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है। नवरात्र क्या है ? पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात ?
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है । इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है । इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा रात्रि में नहीं बल्कि पुरोहित को दिन में ही बुलाकर संपन्न करा देते हैं । सामान्य भक्त ही नहीं बड़े-बड़े धर्मधुरंधर पंडित और साधु- महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी रात जागकर साधना करना नहीं चाहते हैं । न तो कोई आलस्य को त्यागना चाहता है ओर ना ही विधिवत कर्म ही करना चाहता है । अपने आप को आस्तिक दिखाने का दिखावा (एक प्रकार का मनोरंजन के जैसे) करते हैं बस । बहुत कम उपासक आलस्य को त्याग कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते देखे जाते हैं , उनको भी कुछ लोग तान्त्रिक या अन्य निम्नतर की संज्ञा देकर अपमानित करने की नीयत के धनी बैठे हैं । भारतीय मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया है । रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं । आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है ।
हमारे ऋषि – मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे। दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी , किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है । इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। रेडियो इस बात का जीता – जागता उदाहरण है । कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकती हैं , उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है । इसीलिए हमारे ऋषि – मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है । रात्री के समय मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर – दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है । यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है । जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ साधना करते हुए अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य ही होती है ।
नवरात्र या नवरात्रि ?
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं । नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है। नवरात्र क्या है ? पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात ?
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है। हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है । इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है । इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं ।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है ।
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