शनिवार, 12 जुलाई 2014

*गौ सेवा एवं गौ रक्षा हमारा धर्म *


अनादिकाल से मानवजाति गोमाता की सेवा कर अपने  जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है. गोमाता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है. आईये शास्त्रों द्वार वर्णित गौ सेवा के कल्याणकारी कुछ फलों को जाने  -
    नोट :यहाँ हमारा गौ से तात्पर्य विशुद्ध भारतीय गौ वंश से है न कि संकरित विदेशी गौ वंश से |

गौ को घास खिलाना कितना पुण्यदायी 
    तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुन्य  की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरी की आराधना करने पर जो पुन्य  प्राप्त होता है, सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढने तथा समस्त यज्ञो के करने से मनुष्य जिस पुन्य को पाता है, वही पुन्य  बुद्धिमान पुरुष गौओ को खिलाकर पा लेता है.


गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति
    जो पुरुष गौओ की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौए उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है.


गौ सेवा से मनोकामनाओ की पूर्ती
    गौ की सेवा याने गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करनेवाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की ईच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती.


    भगवान् शिव कहते है-हे पार्वती! सम्पूर्ण गौए जगत में श्रेष्ठ है. वे लोगो को जीविका देने  के कार्य  में प्रवृत  हुई है. वे मेरे  अधीन  है और चन्द्रमा के अमृतमय द्रव से प्रकट हुई है. वे  सौम्य, पुन्मयी, कामनाओं की पूर्ती करने वाली तथा प्राणदायिनी है. इसलिए पुन्य प्राप्ति की इच्छा  वालो  को सदैव गायो की पूजा, सेवा (घास आदि खिलाना , पानी पिलाना, रोगी गाय का ईलाज कराना आदि-आदि) करनी चाहिए.


भूमि दोष समाप्त होते है
    गौओ का समुदाय जहा बैठकर  निर्भयतापूर्वक साँस लेता है, उस स्थान की शोभा को बाधा देता है और वह के सारे पापो को खीच लेता है.


सबसे बड़ा तीर्थ गौ सेवा
    देवराज इंद्र कहते है- गौओ में सभी तीर्थ निवास करते है. जो मनुष्य गाय की पीठ छोटा है और उसकी पूछ को नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर स्नान कर देता है.


असार संसार छेह सार पदार्थ
   भवान विष्णु, एकादशी व्रत, गंगानदी, तुलसी, ब्रह्मण और गौए - ये ६ इस दुर्गम असार संसार से मुक्ति दिलाने वाले है.


मंगल होगा
    जिसके घर बछड़े सहित एक भी गाय होती है, उसके समस्त पाप्नाष्ट हो जाते है और उसका मंगल होता है. जिसके घर में एक भी गौ दूध देने वाले न हो उसका मंगल कैसे हो सकता है और उसके अमंगल का नाश कैसे हो सकता है.


ऐसा न करे
    गौओ, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब  कुछ दिया  जाता  है उस समय  जो न देने की सलाह  देते है. वे मरकर प्रेत बनते है.


गोपूजा - विष्णुपूजा
    भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते है के हे देवराज! जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष, गोरोचन और गौ की सदा पूजा सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं, असुरो और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत की भी पूजा हो जाते है. उस रूप में उसके द्वारा की हुई पूजा को मई यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर ग्रहण करता हूँ.


गोधूली महान पापो की नाशक है.
    गायो के खुरो से उठी हुई धूलि, धान्यो की धूलि तथा पुट के शरीर में लगी धूलि अत्यंत पवित्र एवं महापापो का नाश करने वाले है.


चारो सामान है
    नित्य भागवत का पाठ करना, भगवान् का चिंतन, तुलसी को सीचना और गौ की सेवा करना ये चारो सामान है


गो सेवा के चमत्कार
    गौओ के दर्शन, पूजन, नमस्कार, परिक्रमा, गाय को सहलाने, गोग्रास देने तथा जल पिलाने आदि सेवा के द्वारा मनुष्य दुर्लभ सिधिया प्राप्त होती है. 
    गो सेवा से मनुष्य की मनोकामनाए जल्द ही पूरी हो जाती है.
    गाय के शरीर में सभी देवी-देवता, ऋषि मुनि, गंगा आदि सभी नदिया तथा तीर्थ निवास करते है. इसीलिये गोसेवा से सभी की सेवा का फल मिल जाता है.
    गे को प्रणाम करने से - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारो की प्राप्ति होती है. अतः सुख की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान पुरुष को गायो को निरंतर प्रणाम करना चाहिए.
    ऋषियों ने सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम किया जाने वाला धर्म गोसेवा को ही बताया है.
    प्रातःकाल सर्वप्रथम गाय का दर्शन करने से जेवण उन्नत होता है.
    यात्रा पर जाने से पहले गाय का दर्शन करके जाने से यात्रा मंगलमय होती है.
    जिस स्थान पर गाये रहती है, उससे काफी दूरतक का वातावरण शुद्ध एवं पवित्र हो है, अतः गोपालन करना चाहिए.
    भगवान् विष्णु भी गोसेवा से सर्वाधिक प्रसन्न होते है, गोसेवा करनेवाले कोअनायास ही गोलोक की प्राप्ति हो जाती है.
    प्रातःकाल स्नान के पश्चात अर्व्प्रथम गाय का स्पर्श करने से पाप नष्ट होते है.


गोदुग्ध - धरती का अमृत
    गाय का दूश धरती का अमृत है. विश्व में गोद्म्ग्ध के सामान पौष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है. गाय के दूध को पूर्ण आहार माना गया है. यह रोगनिवारक भी है. गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है. यह एक दिव्य पदार्थ है.
    वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना गोमाता की महान सेवा करना ही है. क्योकि इससे गोपालन को बढ़ावा मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की रक्षा ही होती है. गाय के दूध का सेवन कर गोमाता की रक्षा में योगदान तो सभी दे ही सकते है.


पंचगव्य
    गाय के दूध, दही, घी, गोबर रस, गो-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है. पंचगव्य का सेवन करने से मनुष्य के समस्त पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाते है.
    मानव शरीर ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार  नहीं हो   सकता. पंचगव्य से पापजनित  रोग भी नष्ट हो जाते है.


    यदि उपर्युक्त सूत्रों पर विचार किया जाये  तो थोड़े समय में देश में गोक्रन्ती  हो सकती है और यदि गो-दुग्ध सेवन के प्रचार को अधिक महत्त्व दिया जाय तो गोवध तो अपने आप ही धीरे-धीरे बंद हो जायगा|

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